जनता का स्वार्थी ही पार्टी का स्वार्थ है -भाकपा माले






बेतिया, 25 मई।  भाकपा माले नेताओं ने नक्सलवाड़ी आंदोलन में मारे गए उन 9 महिलाएं, एक पुरुष, दो बच्चे तथा दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलनरत किसानों के बीच से अपनी जान गवा चुके सैकड़ों किसानों को श्रद्धांजलि देते हुए, कोविड-19 से जूझ रहे लोगों को सेवा करने का संकल्प लिया, 

आगे भाकपा माले राज्य कमिटी सदस्य सुनील कुमार यादव  ने कहा कि 25 मई 1967 को दुनिया ने पहली बार नक्सलबाड़ी वज्रनाद को सुना था। न्याय माँगने के कारण ग्रामीण दार्जिलिंग में ग्यारह किसान परिवार, जिनमें आठ महिलाएँ एक पुरुष और दो बच्चे थे, को राजसत्ता ने गोलियों से भून डाला। इस घटना के बाद ही नक्सलबाड़ी के क्रांतिकारी जागरण की चिंगारी फूट पड़ी थी, 

भारत की वंचित अवाम के जुझारू प्रतिरोध के उस दौर पर गर्व करते हुए हमें तब से आज के हालात में आए बड़े फर्क को नजरंदाज नहीं करना है, जिसमें हमें नक्सलबाड़ी की क्रांतिकारी भावना को आगे बढ़ाना है। 

नक्सलबाड़ी का आह्वान क्रांति का आह्वान था, वह जनता से एकरूप होने व उसकी सेवा करने का आह्वान था। आज भारत की जनता को मोदी 2.0 और कोविड की दूसरी विनाशकारी लहर से बचाने की चुनौती हमारे सामने है। देश में कोविड से जान गँवाने वाले लोगों का आँकड़ा अब तीन लाख से पार जा चुका है। पिछले दो महीनों में मौत के आँकड़े दोगुना बढ़े हैं। अब तो पूरी दुनिया में जितनी मौतें कोविड से रोज हो रही हैं, भारत में रोज संभवत: उससे ज़्यादा लोग कोविड से मारे जा रहे हैं। ये आँकड़ा तब है जबकि मौत के आँकड़े ठीक से नहीं बताए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा में बहती और नदियों के किनारे बालू में गड़ी लाशें दिख रही हैं। अगर सही आँकड़ा सरकारी आँकड़े का पंद्रह गुना भी माने तो शायद हम अब तक तक़रीबन पचास लाख लोगों को खो चुके हैं। 

भारत में राज्य द्वारा थोपा गया कोविड जनसंहार देख रहे हैं। इस जनसंहार के खिलाफ ताकतवर प्रतिरोध के युद्ध में नक्सलबाड़ी की क्रांतिकारी भावना निश्चित ही हमें प्रेरित करेगी, राह दिखाएगी।



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