भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद -शहीद ए आजम अशफ़ाक उल्लाह खान के जन्मदिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन,

 



बेतिया, 22 अक्टूबर। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद शहीद ए आजम अशफाक उल्लाह खान की जन्मदिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवीयो एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया, इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता एवं डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ने महान स्वतंत्रता सेनानी अशफाक उल्लाह खान को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि अंग्रेजी शासन से देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफ़ाक उल्लाह खां न सिर्फ एक निर्भय और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि उर्दू भाषा के एक बेहतरीन कवि भी थे.  अशफ़ाक उल्लाह खां का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. अशफ़ाक उल्लाह खां ने स्वयं अपनी डायरी में यह लिखा है कि जहां उनके पिता के परिवार में कोई भी स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सका वहीं उनके ननिहाल में सभी लोग उच्च-शिक्षित और ब्रिटिश सरकार के अधीन प्रमुख पदों पर कार्यरत थे. इनके बड़े भाई रियायत उल्ला खां, राम प्रसाद ‘`बिस्मिल`‘ के सहपाठी थे. जिस समय अंग्रेजी सरकार द्वारा बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया था, तब रियायत, अपने छोटे भाई अशफ़ाक को उनके कार्यों और शायरी के विषय में बताया करते थे. भाई की बात सुनकर ही अशफ़ाक उल्लाह के भीतर राम प्रसाद बिस्मिल से मिलने की तीव्र इच्छा विकसित हुई. आगे चलकर दोनों के बीच दोस्ती का गहरा संबंध विकसित हुआ. अलग-अलग धर्म के अनुयायी होने के बावजूद दोनों में गहरी और निःस्वार्थ मित्रता थी. 1920 में जब बिस्मिल वापिस शाहजहांपुर आ गए थे, तब अशफ़ाक ने उनसे मिलने की बहुत कोशिश की, पर बिस्मिल ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. वर्ष 1922 में जब असहयोग आंदोलन की शुरूआत हुई तब बिस्मिल द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभाओं में भाग लेकर अशफ़ाक उनके संपर्क में आए. 

चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे. अशफ़ाक उल्लाह खां उन्हीं में से एक थे. उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए. इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए. आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे. वहीं दूसरी ओर एक मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्लाह खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे. धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था. यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए. इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद सुरेश कुमार अग्रवाल डॉक्टर शाहनवाज अली अमित कुमार लोहिया ने कहा कि काकोरी कांड के बाद देशभर में पड़ रहे  छापो से बचने के लिए एवं राष्ट्रीय आंदोलन को धारदार बनाने के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ राम प्रसाद बिस्मिल ने बेतिया पश्चिमी चंपारण का धन संचय के लिए कई बार दौरा किया था, इस अवसर पर वक्ताओं ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में बेतिया पश्चिम चंपारण में विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय संग्रहालय का निर्माण कराया जाए ताकि नई पीढ़ी अपने पुरखों के गौरवशाली इतिहास को जान सके!

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ