फिजी की स्वाधीनता दिवस पर किया प्लास्टिक के बर्तनों का बहिष्कार, साथ ही पर्यावरण संरक्षण ,स्वच्छता, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम, विश्व शांति ,अहिंसा एवं आपसी प्रेम का दिया संदेश।

 



नई दिल्ली,10 अक्टूबर। बिहार राज्य के बेतिया स्थित सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में फिजी की स्वाधीनता दिवस पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया ,इस अवसर पर विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ,बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया, इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता एवं डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ने  फिजी के स्वाधीनता के नायको एवं स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर को फिजी की स्वाधीनता दिवस के रुप में मनाया जाता है।  

   फिजी पर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के 96 वर्षों के बाद, 10 अक्टूबर 1970 को फिजी को आधिकारिक तौर पर स्वतंत्रता प्रदान की गई थी।  उसी दिन 1874 में, फिजी में ब्रिटिश शासन शुरू करने के लिए राजा सेरू एपेनिसा काकोबाउ द्वारा डीड ऑफ सेशन पर हस्ताक्षर किए गए थे।  नियंत्रण एवं स्वतंत्रता दोनों का सत्र फिजी के लोगों के बीच मनाया जाता है।  इस प्रकार 10 अक्टूबर देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण तारीख है जिसे हर साल हर्ष उल्लास एवं उत्सव के साथ एक सप्ताह तक मनाया जाता है।  द्वीपसमूह में लगभग हर शहर इस अवसर के सम्मान में अपने स्वयं के कार्यक्रम आयोजित करता है, जिसमें सैन्य परेड, भाषण, प्रदर्शन और सड़क पार्टियां शामिल हैं।

  इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल ,डॉ शाहनवाज अली, अमित कुमार लोहिया एवं पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने कहा कि जुलाई 1965 में लंदन में एक संवैधानिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें संवैधानिक परिवर्तनों पर चर्चा करने के लिए जिम्मेदार सरकार की शुरुआत की गई थी । 

पांच वर्षों में भारत-फिजियन और जातीय दोनों प्रतिनिधियों से समझौता हुआ, जिसमें 1967 में सरकार की कैबिनेट प्रणाली का गठन शामिल था, जिसमें पहले मुख्यमंत्री के रूप में रातू कामिसे मारा थे। स्मरण रहे कि  बेहतर जीवन की तलाश में 10 लाख से अधिक भारतीयों ने फिजी समेत अटलांटिक महासागरों के उपनिवेशो पर गन्ना मजदूर के तौर पर अपनी सेवाएं दी , 1874 में ब्रिटिश क्रॉउन द्वारा अधिग्रहित फिजी के उपनिवेश से आर्थिक विकास की उम्मीद थी लेकिन न तो पूजी एवं श्रम आसानी से उपलब्ध था, द्वीप  के पहले वास्तविक गवर्नर सर ऑथर गार्डन ने ऑस्ट्रेलिया की कोलोनियनल चीनी कारखाने के लिए  फिजी में भारतीय मजदूरों को मार्ग प्रशस्त किया, 1879 से 1916 लगभग 60500 भारत के उत्तर प्रदेश विशेष रुप से बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों के विभिन्न धर्मों के मजदूरों ने बेहतर जीवन की तलाश में फिजी की तरफ रुख किया!  फिजी समेत विभिन्न कैरेबियाई द्वीपों के विकास की जुनून में लगभग 10 लाख से अधिक भारतीयों ने अपने घर परिवार एवं अपनी पहचान को हमेशा के लिए खो दिया ,भारतीयों के त्याग एवं बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता!

 प्रिंस चार्ल्स  ने 10 अक्टूबर, 1970 को औपचारिक रूप से फिजी का नियंत्रण रातू सर कामिसे मारा को सौंप दिया।

यूनियन जैक के स्थान पर पहली बार फ़ीजी का झंडा फहराया गया। 

 ब्रिटेन ने फिजी को स्वशासन के लिए सक्षम समझा,  महारानी का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रिंस चार्ल्स ने स्वतंत्रता के दस्तावेज मुख्यमंत्री रातू सर कामिसेस मारा को सौंप दिए।  "हमारे इतिहास की दूसरी अनूठी घटना हमारी स्वतंत्रता की प्राप्ति थी।  इस मायने में अद्वितीय कि कोई मांग नहीं थी, कोई संघर्ष नहीं था, कोई रक्तपात नहीं था - लेकिन संवाद और आम सहमति के माध्यम से जैसा कि उस मनोदशा से प्रदर्शित होता है जिसमें हमने अपनी स्वतंत्रता का जश्न मनाया था।

  प्रिंस चार्ल्स की उपस्थिति में यूनियन जैक को आखिरी cबार सलामी दी गई , रातू सर कामीसेस मारा ने कहा "देवियों और सज्जनों, आइए यूनियन जैक को सलाम करें।  जिस प्रतीक ने पिछले 96 सालों से इस देश पर शासन किया है वह आखिरी सलामी है ।  हम अपने भाग्य के स्वामी बनने जा रहे हैं।  हम उम्र के हो गए हैं।  आइए हम महामहिम महारानी और यूनियन जैक को विदाई और नी सा मोसे कहें।" इस अवसर पर वक्ताओं ने प्लास्टिक के बर्तनों के बहिष्कार ,पर्यावरण संरक्षण ,स्वक्षता, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम एवं आपसी प्रेम का संदेश देते हुए कहा कि इन्हीं विचारों से विश्व में वास्तविक खुशहाली आ सकती है!

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