चंपारण का भितिहरवा आश्रम, जहां बापू ने शुरू किया था बालिकाओं एवं समाज के उपेक्षित वर्ग के छात्रों के लिए विद्यालय, महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी द्वारा शिक्षक के रूप में विद्यालय संचालन की 105 वी वर्षगांठ पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन।

 



चंपारण ((बिहार),20 नवंबर।  सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी द्वारा चंपारण के भितिहरवा आश्रम में बालिकाओं एवं समाज के उपेक्षित वर्ग के छात्रों के लिए विद्यालय स्थापित कर कक्षा आरंभ किए जाने की 105 वी वर्षगांठ पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया ,जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया, इस अवसर पर वरिष्ठ गांधीवादी सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता एवं डा सुरेश कुमार अग्रवाल ने सर्वप्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी, स्वतंत्रता सेनानियों एवं उन शिक्षकों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने भितिहरवा आश्रम के विद्यालय में शिक्षक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी,

16 नवंबर 1917 को बापू ने चंपारण के भितिहरवा में एक विद्यालय और एक कुटिया बनायी. ब्रिटिश अधिकारियों ने साजिश कर बापू के कोठी में आग लगवा कर मारने की कोशिश भी की लेकिन नाकामयाब रहे. 3 दिन के अंदर पक्के ईट के खपरैल आश्रम में छात्र छात्राओं के लिए कक्षा आरंभ कर दी गई,

महात्मा गांधी ने न सिर्फ चंपारण की धरती से स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका था, बल्कि रोजगारपरक शिक्षा के लिए देश में पहले  विद्यालय की स्थापना भी चंपारण में ही की थी. जिला मुख्यालय से करीब 54 किलोमीटर दूर भितिहरवा आश्रम एवं जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर वृंदावन में आज भी तालिम के साथ बच्चों को हुनर भी सिखाया जाता है.

1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने आश्रम और स्कूल का निर्माण भी करवाया था. भितिहरवा  में आज भी खपरैल कुटिया है, इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल डॉक्टर शाहनवाज अली अमित कुमार लोहिया अल बयान के संपादक डॉक्टर सलाम पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने कहा कि बापू का यहां रहना ब्रिटिश अधिकारियों को बिल्कुल गवारा नहीं था. एक दिन बेलवा कोठी के एसी एमन साहब ने कोठी में आग लगवा दी. उनकी साजिश बापू की सोते हुए हत्या करवा देने की थी. पर संयोग था कि बापू उस दिन पास के गांव में थे, इसलिए बच गये. बाद में सब लोगों ने मिलकर दुबारा पक्का कमरा बनाया, जिसकी छत खपरैल है. इस कमरे के निर्माण में बापू ने अपने हाथों से श्रमदान किया.

फिलहाल, देश में बापू के दो प्रमुख आश्रम हैं, अहमदाबाद में साबरमती और महाराष्ट्र में वर्धा. लेकिन भितिहरवा बापू एवं कस्तूरबा गांधी की जिंदगी से जुड़े भावनात्मक और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.

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