मरचा धान का डीएनए फिंगर प्रिंटिंग का कार्य पूर्ण, देश-विदेशों में पूरी की जाएगी मरचा चूड़ा की मांग को।





बेतिया, 01 नवंबर। बिहार के पश्चिमी चम्पारण जिले में खाने वाला मशहूर मरचा धान की खेती होती है, जो अपने आप में अदभुत सुगंध और स्वाद से परिपूर्ण है। मरचा धान का चूड़ा अपने बेहतरीन क्वालिटी के लिए देश-विदेश में विख्यात है। जो भी व्यक्ति एक बार मरचा चूड़ा का स्वाद चख लेता है, वह बारंबार इसको खाने को लालायित रहता है।

   जिस तरह मुजफ्फरपुर के शाही लीची, भागलपुर के कतरनी धान, मधुबनी की पेंटिंग और मगही पान को जीआई टैग मिला है, उसी तरह अब पश्चिमी चम्पारण जिले के मरचा धान/चूड़ा का जीआई टैग के लिए युद्व स्तर पर प्रयास जारी है। 

   ज्ञातव्य हो कि जिलाधिकारी, पश्चिमी चम्पारण के दिशा-निर्देश के आलोक में अधिकारियों की एक पूरी टीम मरचा चूड़ा को जीआई टैग दिलाने के लिए करीब एक साल से कार्य कर रही है। इस दौरान जिलाधिकारी द्वारा कार्य प्रगति की नियमित समीक्षा की जाती रही है। 


जिला प्रशासन द्वारा पश्चिमी चम्पारण जिले के विश्व विख्यात मरचा चूड़ा को जीआई टैग दिलाने हेतु हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास अब अंतिम चरण में है, शीघ्र ही जिले के मरचा चूड़ा को जीआई टैग मिलने की प्रबल संभावना है।


इसी परिप्रेक्ष्य में आज जिलाधिकारी, श्री कुंदन कुमार की अध्यक्षता में एक समीक्षात्मक बैठक सम्पन्न हुई। इस बैठक में पूसा के वैज्ञानिक, कृषि विभाग के अधिकारी एवं अन्य संबंधित अधिकारी उपस्थित रहे।


समीक्षा बैठक में डॉ0 एन0 के0 सिंह, वैज्ञानिक आरपीसीयू ने बताया कि जीआई टैग हेतु डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विद्यालय, पूसा के वैज्ञानिकों द्वारा मरचा धान का डीएनए फिंगर प्रिंटिंग का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। साथ ही बायोकेमिकल एनालिसिस का कार्य भी शीघ्र पूर्ण हो जाएगा।


उन्होंने बताया कि कृषि विभाग के अधिकारियों, केवीके के वैज्ञानिक के साथ मरचा धान/चूड़ा की जीआई टैगिंग के लिए नमूना एवं डाटा संग्रह हेतु नरकटियागंज के समहौता गांव अवस्थित प्लॉट का दौरा भी किया गया है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि मरचा धान/चूड़ा का निबंधन (जीआई टैग) हो जाने के बाद मरचा धान के चूड़ा की मांग देश-विदेशों में पूरी की जा सकेगी। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी तथा रोजगार भी वृद्धि होगी।


उन्होंने बताया कि मरचा चूड़ा की विशेषता इसकी खास स्वाद एवं सुगंध है। यह सुगंध 2-एसिटाइल प्रोपाइलिन नामक वोलेटाइल कंपाउंड के कारण होती है। पश्चिमी चम्पारण जिले के तराई क्षेत्रों में इस कंपाउंड के निर्माण हेतु आवश्यक जलवायु एवं मिट्टी उपलब्ध है। इस कारण इन क्षेत्रों में मरचा धान की खेती बहुतायात रूप से होती है।


वरीय उप समाहर्ता, श्री राजकुमार सिन्हा ने बताया कि जीआई टैग हेतु मरचा धान से आने वाले विशिष्ट सुगंध तथा इसके यूनिकनेस का पता करने के लिए मोरफोरलोजिकल एग्रोनोमिक ट्रेट, ग्रेन क्वालिटी करेक्टराईजेशन तथा मोलुकुलर एनालिसिस किया जाना होता है। मोलुकुलर एनालिसिस के लिए मरचा धान का सैंपल, पहले सीआरआरआई (सेन्ट्रल राइस रिसर्च इन्स्ट्यूट, कटक) भेजा जाता था लेकिन ये सुविधा अब डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में भी मौजूद होने के कारण इसी संस्थान के माध्यम से डीएनए एनालिसिस कराया गया। मरचा पौधे से डीएनए को निकालकर उसका पीसीआर के माध्यम से एम्पलीफिकेशन करके एरोमा स्पेस्फिक जीन का एनालिसिस किया जाता है। ये जीन 2-एसेटाईल प्रोरिलिन सेंथेसिस के लिए जिम्मेदार होता है


उन्होंने बताया कि मरचा धान को जीआई टैग दिलाने के लिए आवश्यक एक्सपेरिमेंट पिछले एक साल से किया जा रहा है। जीआई स्पेस्फिक एरिया और नन जीआई एरिया में मरचा धान का उत्पादन किया जा रहा है। मरचा धान के प्लांट को केवीके, माधोपुर में भी लगाकर उस पर स्टडी किया गया है। 


जिलाधिकारी द्वारा जिले के मरचा धान/चूड़ा को जीआई टैग दिलाने में प्रयास करने वाले अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों की सराहना की गई तथा ने कहा गया कि मरचा धान/चूड़ा को जीआई टैग दिलाने का कार्य जल्द से जल्द पूर्ण कर लिया जाय। इससे संबंधित सभी प्रक्रियाओं को तीव्र गति से क्रियान्वित कराना सुनिश्चित किया जाय।


उन्होंने कहा कि पश्चिमी चम्पारण जिले के विकास में मरचा चूड़ा को जीआई टैग मिलना अत्यंत ही कारगर साबित होगा। इससे किसानों का जहाँ आर्थिक विकास होगा वहीं रोजगार बढ़ाने में भी मददगार साबित होगा।


इस अवसर पर डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विद्यालय, पूसा के वैज्ञानिक, डॉ0 एन0 के0 सिंह, वैज्ञानिक  धीरू कुमार तिवारी, वरीय उप समाहर्त्ता, राजकुमार सिन्हा, जिला कृषि पदाधिकारी,  विजय प्रकाश, सहायक निदेशक, उद्यान आदि उपस्थित रहे।

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