देश के महान संत रामकृष्ण परमहंस की जन्म दिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन।

 



बेतिया, 18 फरवरी। भारत की स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष पर भारत के महान संत एवं विचारक स्वामी रामकृष्ण परमहंस की जन्म दिवस के अवसर पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया इस अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एंबेसडर सहा सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता एवं डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ने संयुक्त रूप से भारत के महान संत एवं विचारक स्वामी रामकृष्ण परमहंस को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 18 फरवरी 1836 को भारत के बंगाल प्रांत में हुआ था। उनका सारा जीवन सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिए रहा।भारत के महान संत एवं विचारक  सर्वधर्मेकता पर जोर देने वाले स्वामी रामकृष्ण मानवता के ऐसे संत थे , जो अपने साधना के फलस्वरूप इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संसार के सभी धर्म मानवता के लिए है । उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं। रामकृष्ण परमहंस को बचपन से ही ऐसा विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन संभव है अर्थात हो सकते हैं । इसलिए ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना एवं भक्ति का जीवन बिताया।रामकृष्ण परमहंस का जीवन अद्भुत कल्पनाओं, कामनाओं, विचारों से ही नहीं अपितु किंवदन्तियों से परिपूर्ण है,तदपि न केवल पूर्वी बंगाल में अपितु देश -देशान्तर में उनके असंख्य शिष्यों की ऐसी परम्परा प्रचलित है, इतने अधिक मठ एवं मन्दिर हैं कि कदाचित ही किसी अन्य संन्यासी के इतने मठ, शिष्य आदि हों।  उनके जीवनकाल में जो कोई भी उनके सम्पर्क में आया उसको उन्होंने अपनी कृपा से उपकृत किया।स्वामी विवेकानन्द, जिनका पूर्व नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था, रामकृष्ण के ही अनन्य भक्त एवं शिष्य थे। स्वामी विवेकान्द ने विश्व भर में योग एवं वेदांत का डंका बजाया था। विदेशों में योग एवं वेदांत का डंका बजाने वाले कदाचित वे पहले संन्यासी थे। रामकृष्ण का जब उदय हुआ था, लगभग उसी समय बंगाल में ब्रह्मसमाज की स्थापना भी हुई थी।

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