भारत रत्न डॉ ज़ाकिर हुसैन ने स्वाधीनता के बाद चंपारण में खादी ग्राम उद्योग ,स्वालंबन एवं स्वरोजगार को नई दिशा प्रदान की।

 


पश्चिम चंपारण के  ऐतिहासिक भितिहरवा आश्रम को उपलब्ध कराया था 80 चरखा।                              

   भारत रत्न डॉ जाकिर हुसैन की 125 वी जन्म शताब्दी पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन ।                             

                      ( शाहीन सबा की रिपोर्ट ) 

पटना, 08 फरवरी। बिहार राज्य में स्थित सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार बेतिया मे सत्याग्रह भवन में भारत रत्न डॉ जाकिर हुसैन की 125 वी जन्म शताब्दी एवं भारत की स्वाधीनता की 75वी वर्षगांठ आजादी का अमृत महोत्सव पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों  बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड एवं डॉक्टर शाहनवाज अली ने संयुक्त रुप से भारत रत्न डॉ जाकिर हुसैन को  श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि भारत रत्न जाकिर हुसैन भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे। 1957 से 1962 तक उन्होने बिहार के राज्यपाल और 1962 से 1967 तक भारत के उपराष्ट्रपति के पद पर कार्य किया। बिहार के राज्यपाल के रूप में डॉ जाकिर हुसैन ने चंपारण मे खादी ग्राम उद्योग ,स्वरोजगार एवं स्वालंबन पर विशेष ध्यान केंद्रित किया था।1962 में भितिहरवा आश्रम को 80 चरखा उपलब्ध कराया था । उन्होंने ऐतिहासिक भितिहारवा आश्रम एवं वृंदावन आश्रम को आधुनिक चरखा उपलब्ध कराया था। ताकि चंपारण की धरती पर देश की स्वाधीनता के बाद खादी ग्राम उद्योग स्वालंबन एवं स्वरोजगार को नई दिशा प्रदान की जाए ।उनका राष्ट्रपति कार्यकाल 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक चला। उन्हे 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 

डॉ. ज़ाकिर हुसैन भारत के राष्ट्रपति बनने वाले पहले मुसलमान थे। देश के युवाओं से सरकारी संस्थानों का बहिष्कार की गाँधी की अपील का हुसैन ने पालन किया। उन्होंने अलीगढ़ में मुस्लिम नेशनल यूनिवर्सिटी (बाद में दिल्ली ले जायी गई) की स्थापना में मदद की और 1926 से 1948 तक इसके कुलपति रहे। महात्मा गाँधी के निमन्त्रण पर वह प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष भी बने, जिसकी स्थापना 1937 में स्कूलों के लिए गाँधीवादी पाठ्यक्रम बनाने के लिए हुई थी। 1948 में हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने और चार वर्ष के बाद उन्होंने राज्यसभा में प्रवेश किया। 1956-58 में वह संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति संगठन (यूनेस्को) की कार्यकारी समिति में रहे। 1957 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया बिहार के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल 1957 से 1962 तक रहा। उनका सारा जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित रहा। वक्ताओं ने नई पीढ़ी से आह्वान करते हुए कहा कि आज सारा देश भारत रत्न जाकिर हुसैन की 125 वी जन्म शताब्दी एवं भारत की स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है ।शिक्षा एवं सामाजिक जागृति के लिए उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।डॉ जाकिर हुसैन के विचार नई पीढ़ी के लिए आज भी प्रासंगिक है। उनके जीवन दर्शन को अपना कर भारत को विकसित राष्ट्र बनाया जा सकता है, जिसका सपना बरसों पहले महात्मा गांधी, डॉ जाकिर हुसैन एवं हमारे पुरखों ने देखा था।

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