संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहब डा भीमराव अंबेडकर ने सबको समान रूप से दिलाया था पानी पीने का अधिकार।

 



 बेतिया, 14 अप्रैल।  सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत के संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर  की 131 वी जन्मदिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया ,जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ,बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, अमित कुमार लोहिया ,डॉ शाहनवाज अली, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल, जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता नवीदु चतुर्वेदी एवं अल बयान के संपादक  डॉ सलाम ने संयुक्त रूप से भारतीय संविधान के निर्माता भारत रत्न बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित  करते हुए कहां की आज ही के दिन आज से 131 वर्ष 14 अप्रैल 1891 ई को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जन्म हुआ था। उनका सारा जीवन सामाजिक उत्थान के लिए रहा। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य समाज के उपेक्षित वर्ग अल्पसंख्यकों एवं दलितों के मानव अधिकारों के लिए जारूकता पैदा करना था। भारत रत्न बाबा साहब डा भीमराव अंबेडकर ने सत्याग्रह के माध्यम से निश्चय किया कि  समाज का उपेक्षित वर्ग अल्पसंख्यक एवं अछूत समाज समान रूप से पानी पीकर रहेगा।

दुनिया का इतिहास भेदभाव-जुल्म एवं इसके विरुद्ध संघर्ष का इतिहास है. अधिकांशतः ये भेदभाव या जुल्म किसी शासक या सरकारों द्वारा जनता पर किए गए हैं । जनता ने इस भेदभाव, जुल्म के विरुद्ध संघर्ष भी किया है। लेकिन दुनिया में कई हिस्से ऐसे हैं, जहां सिर्फ सरकारों एवं शासकों ने नहीं, पूरे के पूरे समुदाय ने दूसरे समुदाय पर अत्याचार किए हैं। भारत में  जातिवादी व्यवस्था द्वारा दलितों-पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों को संस्थागत रूप से संसाधनों से वंचित किया गया. एक वर्ग को अछूत एवं अल्पसंख्यक घोषित किया गया, उन पर जुल्म ढाए गए.

मध्यकालीन भारत  एवं ब्रिटिश राज में भारतीय समाज सुधारकों के प्रयासों से अछूतों को शिक्षा एवं  सम्पत्ति का अधिकार मिलने से उनके अंदर अधिकारों के लिए चेतना पैदा हुई , जिससे वे अपने मानवीय अधिकारों की मांग करने लगे. इसी मांग का परिणाम था सन् 1927 में महाड़ का आंदोलन. यह आंदोलन ऐसा है जिसे भारतीय इतिहास में लम्बे समय तक याद रखा रखा जायेगा. यह आंदोलन इसलिए शुरू हुआ क्योंकि अछूतों एवं समाज के उपेक्षित वर्ग को सार्वजनिक स्थान से पानी पीने की मनाही थी.

महाड़ पश्चिम महाराष्ट्र में कोकण क्षेत्र में एक क़स्बा है, जिसकी आबादी उस समय लगभग सात हज़ार थी. इसी महाड़ कस्बे में चावदार तालाब है. उस तालाब में सवर्ण  नहा सकते थे, कपड़े धो सकते थे, किन्तु दलित वहां प्रवेश नहीं कर सकते थे. 1920 के दशक में डा.आंबेडकर लंदन से बैरिस्टर बनकर वापस लौटे थे. वे 1926 में बम्बई विधान परिषद के सदस्य भी बने थे. इस समय तक उन्होंने सामाजिक कार्यों और राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू कर दी थी।

बाबा साहेब ने अपने समाज को बताया कि सार्वजनिक स्थान से पानी पीने का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है. 1923 में बम्बई विधान परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया कि सरकार के द्वारा बनाये गए एवं पोषित तालाबों से अछूतों को भी पानी पीने की इजाजत है. 1924 में महाड़ नगर परिषद ने इसे लागू करने के लिए एक प्रस्ताव भी पास किया. फिर भी अछूतों को स्थानीय सवर्ण  के विरोध के कारण पानी पीने की इजाजत नहीं थी. बाबा साहेब का उद्देश्य दलितों में उनके मानव अधिकारों के लिए जारूकता पैदा करना था. उन्होंने यह निश्चय किया कि हमारा अछूत समाज इस तालाब से पानी पीकर रहेगा.

इसके लिए दो महीने पहले एक सम्मेलन बुलाया गया. लोगों में जागृति पैदा करने के लिए सत्याग्रह आरंभ की गई ।लोगों को गांव-गांव भेजा गया कि 20 मार्च, 1927 को हम इस तालाब से पानी पीयेंगे. लोगो को इकठ्ठा किया गया. एक पंडाल लगाया गया. जिसमें अच्छी-खासी भीड़ इकठ्ठी हुई. काफी दूर-दूर से लोग आये.  लगभग 10,000 से अधिक लोगों ने सबके लिए जल सत्याग्रह में हिस्सा लिया। उस पंडाल के लिए जमीन एक मुसलमान परिवार ने दी थी. सवर्ण लोगों ने   मुसलमानों पर दबाब भी डाला कि ऐसे सत्याग्रह के लिए जमीन न दें, फिर भी उन्होंने अपनी जमीन दी.

सम्मेलन में बाबा साहेब आंबेडकर ने अछूतों समाज के उपेक्षित वर्ग के समक्ष  ओजस्वी भाषण दिया कि हमें गंदा नहीं रहना है, साफ़ कपड़े पहने  , मरे हुए जानवर का मांस नहीं खाना है. हम भी इन्सान हैं और दूसरे इंसानों की तरह हमें भी सम्मान के साथ रहने का अधिकार है।

जब कोई बाहरी इंसान या जानवर भी इस तालाब का पी सकता है, तो हम पर रोक क्यों? बाबा साहेब ने इस आंदोलन की तुलना फ्रांसीसी क्रांति से की. ध्यान रहे कि फ्रांसीसी क्रांति समाज के सामंतवादी वर्ग एवं धार्मिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के विरोध में हुयी. फ्रांसीसी क्रांति ने पूरी दुनिया को स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का मार्ग दिखाया.

बाबा साहेब ने अपने भाषण में आगे कहा कि, ‘यह समाज की पुनर्संरचना का प्रयास है, सामंतवादी समाज एवं उसकी असमानता को मिटाने का प्रयास है. स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित नए समाज को बनाने का प्रयास है.’ भाषण के बाद डा. अंबेडकर हज़ारों अनुयायियों के साथ चावदार तालाब गए, और वहां पानी पीया.

यह सत्याग्रह पूर्णतया शांतिपूर्ण था, लेकिन अपने उद्देश्यों में बड़ा था, क्योंकि यह सदियों से स्थापित जातिवादी वर्चस्व को चुनौती दे रहा था. इस आंदोलन की प्रतिष्ठा बहुत है. इसीलिए 20 मार्च को प्रतिवर्ष मानव गरिमा दिवस या अस्पृश्यता निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है. आगे चलकर यह आंदोलन दलितों की मुक्ति संघर्ष का आधार बना. इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि बाबा साहब भीमराव के आदर्श नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन है।

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