स्वतंत्रता सेनानी शहीद-ए-आजम मंगल पांडे की शहादत दिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन।

             


              

 पटना, 08 अप्रैल।   सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय मंगल पांडे की 165 वी शहादत दिवस पर एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया ।जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया ।इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ,अमित कुमार लोहिया, डॉ शाहनवाज अली ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल एवं अ़ल बयान के संपादक डॉ सलाम  ने संयुक्त रुप से भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद-ए-आजम मंगल पांडे को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन आज से 165 वर्ष पूर्व 8 अप्रैल 1957 को अमर शहीद शहीद-ए-आजम मंगल पांडे वीरगति को प्राप्त हुए। उनका सारा जीवन मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए समर्पित रहा।

 30 जनवरी 1831 को जन्मे मंगल पांडेय कोलकाता के निकट बैरकपुर छावनी में 19वीं रेजीमेंट के 5वीं कंपनी के 1446 नंबर के जांबाज सिपाही थे। अंग्रेजों द्वारा भारतीय सैनिकों से भेदभावपूर्ण व्यवहार, ब्रिटिश सेना की राईफलों में चर्बी युक्त कारतूस के इस्तेमाल एवं अन्य कई कारणों से मंगल पांडेय अन्य भारतीय सैनिक काफी दुखी थे। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान में सैनिक मंगल का असंतोष खुलकर दिखाई देने लगा। मंगल पांडेय अंग्रेज अधिकारियों पर शेर की तरह हमला किया। उन्होंने परेड मैदान पर ही मुकाबला करते हुए मेजर ह्यूसन को गोली मार दी तथा लेफ्टिनेंट बाग को तलवार से काट दिया।

कर्नल बिलर मैदान छोड़कर भाग गये। सैनिक अदालत में उन पर मुकदमा चला। उन्हें फांसी की सजा सुनायी गयी। फांसी की तिथि सात अप्रैल 1857 तय की गई, लेकिन स्थानीय जल्लादों ने उन्हें फांसी देने से इंकार कर दिया। इसके बाद अंगे्रजी फौज असमंजस में पड़ गई तथा इसके चलते एक दिन के लिए फांसी की तिथि को भी टालनी पड़ी। इसके बाद अंग्रेज अफसरों ने चुपके से कोलकाता से जल्लाद बुलाया तथा आठ अप्रैल 1857 की सुबह बैरकपुर कैंट में एक बरगद के पेड़ से मंगल पांडेय को फांसी पर लटका दिया गया। इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद एवं डॉ सुरेश अग्रवाल ने संयुक्त रूप से कहा कि

 शहीद मंगल पांडेय को जिस ऑर्डर में सैनिक अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, वह जबलपुर के हाईकोर्ट म्यूजियम में आज भी सहेज कर रखा गया है। ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाही मंगल पांडेय ने 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में विद्रोह किया था। कई दिनों तक चले ट्रायल के बाद छह अप्रैल 1857 को कोर्ट ने आरोप तय करते हुए फांसी की सजा सुना दी थी। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि महात्मा गांधी का मानना था कि स्वाधीनता के बाद मृत्युदंड की सजा को समाप्त कर दिया जाएगा ।आज भी भारत समेत एशिया अफ्रीका  के‌ देशों में मृत्युदंड की सजा बरकरार है ।इसे समाप्त करने की आवश्यकता है।

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