चंपारण, 01 मई। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सचिव सह ब्रांड एंबेसडर स्वच्छ भारत मिशन डॉ0 एजाज अहमद (अधिवक्ता ), डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, डॉशाहनवाज अली, अमित कुमार लोहिया ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल एवं अल बयान के संपादक डॉ सलाम ने संयुक्त रुप से कहा कि अंग्रेजों के अत्याचार एवं नील की खेती के अभिशाप से महात्मा गांधी ने 22 अप्रैल 1917 को शाम 5 बजे बेतिया के ऐतिहासिक हजारीमल धर्मशाला पहुंचकर ऐतिहासिक हजारीमल धर्मशाला में सत्याग्रह कार्यालय की स्थापना की थी। महात्मा गांधी ने मई 1918 तक निरंतर ऐतिहासिक हजारीमल धर्मशाला में सत्याग्रह कार्यालय का संचालन किया। अंग्रेजों के अत्याचार का आलम यह था कि चंपारण के किसानों से जबरन उनके खेतों में नील की खेती कराई जाती। नील की खेती से किसानों के खेत बंजर हो जाते। किसानों द्वारा अपने खेतों में नील की खेती न करने पर अंग्रेजों द्वारा जुल्म का सामना करना पड़ता। उन्हें 42 तरह के टैक्स देने पड़ते थे। साठी कोठी के अंग्रेज अधिकारी ऐमन के अत्याचार की दासता तो अजीब ही है। किसानों के विरोध करने पर हाथी के पांव में जंजीरों से बांधकर उन्हें पूरे गांव एवं बाजार घुमाया जाता था। महात्मा गांधी ने चंपारण के किसानों से अनुरोध किया कि एकजुट होकर अंग्रेजों के जुर्म का विरोध करें । महात्मा गांधी के नेतृत्व में राजकुमार शुक्ल, शेख गुलाब, पीर मोहम्मद मुनीश ,शीतल राय , खेनर राव ,शेख शेर मोहम्मद ,संत राऊत जैसे हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में 16 जुलाई 1917 को ऐतिहासिक हजारीमल धर्मशाला एवं 17 जुलाई 1917 को ऐतिहासिक राज हाई स्कूल के प्रांगण में 10,000 से अधिक किसानों ने अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध चंपारण जांच कमेटी के समक्ष अपना बयान दर्ज कराया था ।देखते ही देखते महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्य अहिंसा एवं आपसी प्रेम के माध्यम से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रांची स्थित लेफ्टिनेंट गवर्नर के समक्ष चंपारण जांच कमेटी की रिपोर्ट प्रस्तुत की। चंपारण के किसानों पर नील की अभिशाप एवं चंपारण के किसानों पर अंग्रेजों के अत्याचार को सत्य पाया गया। ऐसे में गवर्नर 01 मई 1918 को लेफ्टिनेंट गवर्नर जेनरल ने चंपारण किसानों को एक अध्यादेश के अंतर्गत नील की खेती स्वतंत्र कर दिया !।नील की खेती को अवैध घोषित कर दिया। आज हमें पुन: 105 वर्ष बाद 1 मई के अवसर पर महात्मा गांधी कस्तूरबा गांधी अमर शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर प्राप्त हो रहा है ।यह हमारे लिए सौभाग्य बात है। इस अवसर पर बिहार विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के डॉ0 शाहनवाज अली एवं स्वच्छ भारत मिशन के डॉ एजाज अहमद ने कहा कि बाल श्रम एक सामाजिक कुरीति है ।इसे किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। निसंदेह बाल श्रम के कारणों में परिवार की आर्थिक स्थिति इसका एक महत्वपूर्ण कारण है। 2016 में 1986 के अधिनियम में व्यापक संशोधन किए गए ।विगत कई वर्षों में सत्याग्रह की धरती बेतिया पश्चिम चंपारण बालश्रम का गढ़ बना हुआ है । बेतिया पश्चिम चंपारण धरती सदैव बाल श्रम एवं बाल दास्तां की विरोधी रही है। लेकिन विगत कई वर्षों में नेपाल के रास्ते बिहार एवं देश के विभिन्न हिस्सों में बाल श्रम एवं बच्चों के मानव व्यापार की घटनाएं बढ़ी हैं !विभिन्न संगठनों के सर्वे के मुताबिक बेतिया पश्चिम चंपारण में 30,000 से अधिक बाल श्रमिक हैं ।अतः यह सरकार एवं समाज की नैतिक जिम्मेवारी है कि बेतिया पश्चिम चंपारण में 30,000 से अधिक बाल श्रमिकों को उन्हें मुक्त कराकर शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा जाए, ताकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी, अमर शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को भारत की स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ आजादी का अमृत महोत्सव पर साकार हो सके।
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