पश्चिमी चंपारण मे दीपदान महोत्सव

 



   बेतिया,23 अक्टूबर।  दीपदान महोत्सव के उपलक्ष्य में लौरिया अशोक स्तंभ प्रांगण में कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें अशोक मिशन क्लब एवं बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया, प. चंपारण ने विशेष रूप से आयोजन में अपनी भूमिका निभाई, पूरे जिले के सुदूर गांव से भी जनता तथा जनप्रतिनिधियों ने भाग लिया, बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के मुख्य संरक्षक तथा प्रबुद्ध भारती के राष्ट्रीय संयोजक मिसाइल इंजीनियर विजय कश्यप तथा बेतिया नगर निगम की मेयर प्रत्याशी गीता देवी कश्यप ने संयुक्त रुप से जानकारी देते हुए बताया की आज के दिन 17 वर्ष की कठोर साधना के पश्चात तथागत बुद्ध , सिद्धार्थ से बोधिसत्व बनकर  एवं मानव के दुखों का कारण और उसका निराकरण पर शोध कर और ज्ञान प्राप्त कर अपने गृह जनपद लुंबिनी अपने शिष्य आनंद के आग्रह पर पधारे ,उनके गृह जनपद आने पर राजा शुद्धोधन अपनी पूरी जनता के साथ लुंबिनी नगरी को दीपों से सजवाया जो दीपदान तथा असतो मा सद्गमय के प्रतीक के रूप में आज हमारे बीच मनाई जाती है

         आज के ही दिन चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने तथागत बुद्ध के 84 हजार धम्मपदो के सम्मान में 84000 शोध केंद्र जिनकी पहचान के रूप में शिलालेख एवं अशोक स्तंभ स्थापित किए गए, जिनके कारण से भारत पूरी दुनिया का जगतगुरु तथा दुनिया की बड़ी से बड़ी , नालंदा एवं तक्षशिला जैसी विश्वविद्यालय भारत में स्थापित हुई और भारत जगतगुरु कहलाया, आज भी और कल भी भारत जगतगुरु कहलाएगा तो उसी दिव्य ज्ञान की कारण,  तथागत बुद्ध के एवं महावीर के "के बाद इस पृथ्वी पर मानवता के रूप में तथा मानव मानव के बीच समता स्वतंत्रता न्याय तथा बंधुत्व के रूप में हमारे भारतीय संविधान के रूप में आज हमें प्राप्त है

       भारतीय संविधान के अंतर्गत तिरंगे की बीच 24 तिली वाला धम्मचक्र एवं अशोक स्तंभ जो संविधान की पहचान है वह भी सम्राट अशोक के शासन काल एवं नीतियों की पहचान है

        जिन देशों ने तथागत बुद्ध के सिद्धांतों को अपना लिया  वे आज दुनिया के महानतम देशों की श्रेणी में गिने जाते हैं, और विज्ञान की बात हो या कल      करखाने की बात हो ,आज दुनिया की सबसे लेटेस्ट टेक्नोलॉजी जापान और चाइना तथा छोटे से कोरिया में पाई जाती है,

       पूरी दुनिया में समता स्वतंत्रता और न्याय का तथा विश्व बंधुत्व का संदेश देने वाला एकमात्र धम्म मार्ग बुद्धिज्म है

     सिद्धार्थ ने ध्यान के मार्ग अपना कर तथा सुजाता की खीर खाकर ज्ञान प्राप्त की है ,विपश्यना ध्यान आज सारी दुनिया में श्रेष्ठ वैज्ञानिक ध्यान की पद्धति है,  सारी दुनिया लाभान्वित हो रही है, एवं रोग मुक्त हो रही है।

     योग संस्कृति ही भविष्य की विश्व संस्कृति है, आज समय का तकाजा है, कि ,हम सभी जाति पंथ राष्ट्र एवं धर्म की परिधियों से ऊपर उठकर मानव मात्र के कल्याण की बात को ही श्रेष्ठ माने एवं बुध तथा महावीर के मार्ग को अपनाकर दुनिया को एक श्रेष्ठ दुनिया बनाएं ।      भवतु सब्ब मंगलम!    सबका कल्याण हो  !सबका कल्याण हो !

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