जिला मे टीबी के खात्मे के लिए जनांदाेलन जरूरी सामूहिक सहभागिता से दूर होगी बीमारी- एसटीएस

 




बेतिया, 19 दिसंबर।    टीबी के खात्मे के लिए लोगों की सजगता जरूरी है। इसके लिए एक प्रभावी संचार रणनीति की आवश्यकता है। जिस तरह से पूरे देश को पोलिया मुक्त किया गया, उसी तरह से टीबी मुक्त करने की भी जरूरत है। इसके लिए सामूहिक सहभागिता व जनआंदोलन की आवश्यकता है। सामूहिक सहभागिता से ही बिहार व पूरे देश को टीबी मुक्त किया जा सकता है।यह बातें एसटीएस रंजन कुमार ने कहीं।वे प्रखंड के महनागन्नी स्तिथ हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर आयोजित सीएचओं, आशा कार्यकर्ताओं,एएनएम एवं केएचपीटी की समन्यव बैठक को संबोधित कर रहे थे।रंजन ने कहा कि 2025 तक जिले को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य सरकार भी टीबी उन्मूलन की दिशा में हर संभव कदम उठा रही है। स्वास्थ्य विभाग नये साधन व तकनीक को अपनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा और टीबी उन्मूलन के लिए लगातार प्रयासरत है। जिले में टीबी मरीजों की खोज की जा रही है। कहा कि अगर किसी व्यक्ति को यह बीमारी है तो उसे छिपाएं नहीं बल्कि बताएं ताकि उनका बेहतर उपचार किया जा सके।इस दौरान सीएचओं शबनम ने कहा कि बच्चों व व्यस्कों में टीबी बीमारी का लक्षण सामान्य होता है। टीबी सबसे ज्यादा फेफड़ों को प्रभावित करती , इसलिए शुरुआती लक्षण खांसी आना है। पहले तो सूखी खांसी आती लेकिन बाद में खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है। दो हफ्तों या उससे ज्यादा खांसी आए तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिए। पसीना आना, थकावट, वजन घटना, बुखार रहना टीबी के लक्षण हैं ।वहीं केएचपीटी के सामुदायिक समन्यवक डॉ घनश्याम ने कहा कि जिले के सभी प्रखंडों में टीबी मरीजों के लिए संपूर्ण इलाज की व्यवस्था उपलब्ध है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जांच की सुविधा के साथ दवा भी उपलब्ध है। जो दवा निजी अस्पताल में मिलती वही सरकारी अस्पताल में भी मिलती है। लेकिन निजी अस्पताल में अधिक कीमत पर यह दवा उपलब्ध है, जबकि सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दी जाती । टीबी के मरीजों को दवा का कोर्स पूरा करना जरूरी है। अगर बीच में दवा छोड़ देते हैं तो उनका इलाज लंबे समय तक चलता है।केएचपीटी के सीसी अनिल कुमार ने बताया कि यह छूआछूत की बीमारी नहीं है

    टीबी छुआछूत की बीमारी नहीं है। मरीज को इतना ख्याल रखना है कि वह मुंह-नाक पर रूमाल रखकर खांसे या छीकें। इलाज चलता रहे तो दो सप्ताह बाद टीबी के फैलने का खतरा खत्म हो जाता है।बैठक में एएनएम बेबी कुमारी,आशा फैसिलिटेटर राधिका कुमारी, आशा कार्यकर्ता मंजू देवी,किरण कुमारी,महिप कुमार,गौरी शंकर राय आदि थे।

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