पवित्र मोहर्रम पर विशेष :- महात्मा गांधी को हजरत इमाम हुसैन एवं कर्बला के अमर शहीदो के कुर्बानियों से मिली थी जुल्म के विरुद्ध खड़े होने की प्रेरणा, हजरत इमाम हुसैन से सीखा मज़लूमियत में कैसे पा सकते हैं जीत।

                   


         
पटना, 29 जुलाई। बेतिया शहर मे स्थित सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में पवित्र मोहर्रम के अवसर पर हजरत इमाम हुसैन एवं कर्बला के शहीदों के सम्मान में एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया, जिसमें सभी धर्मों के लोगों ने भाग लिया। इस अवसर पर विश्व शांति मानवता पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक सद्भावना का संदेश देते हुए सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया,  समाजिक संस्था "मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट " की निदेशक एस सबा, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन, डॉ महबूब उर रहमान एवं समाज सेवी सह पत्रकार डॉ अमानुल हक ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी  ने कहा था, ”अगर मेरे पास हुसैन जैसे 72 साथी होते तो मैं 24 घंटे में भारत को अंग्रेजों से मुक्त करा देता।”
महात्मा गांधी के अलावा हजरत इमाम हुसैन एवं कर्बला के अमर शहीदो की शहादत को लगभग 1400 बरसों से पूरी दुनिया में हजारों महापुरुषों ने स्मरण करते हुए अपने जीवन में वास्तविक प्रकाश लाने का प्रयास किया। हजरत इमाम हुसैन एवं कर्बला के शहीदों के त्याग एवं बलिदान के पाठ ने विश्व के हजारों महापुरुषों ने लाभांवित किया। महान स्वतंत्रता सेनानी खान अब्दुल गफ्फार खान उर्फ बादशाह खान , लियो टॉलस्टॉय, नेल्सन मंडेला, शेख  मुजीब उर रहमान ,मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, महान स्वतंत्रता सेनानी रविन्द्र  नाथ टैगोर, महान स्वतंत्रता सेनानी सह भारत सरकार के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, स्वर्गीय यासिर अराफात,हजरत इमाम हुसैन एवं कर्बला के शहीदों से प्रभावित रहे हैं।
गम का महीना मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल का पहला महीना होता है। इस महीने की 10 तारीख को आशूरा (मातम) का दिन कहते हैं। इसी रोज पैगंबर हज़रत मोहम्‍मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन कर्बला (इराक) की जंग में 71 साथियों के साथ शहीद हो गए थे। इसमें उनके दोस्त और परिवार के कई सदस्यों समेत 6 माह के बेटे अली असगर भी शामिल थे। मारे गए सभी लोग 3 रोज से भूखे प्यासे थे। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि
हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों ने क्रूर शासक यज़ीद कीने  जुल्म और तानाशाही के आगे झुकने के बजाए शहीद होना चुना था। सर्वोच्च बलिदान तक इंसानियत और सच के रास्ते परियों चलने के इसी आत्मविश्वास ने महात्मा गांधी को गहरा प्रभावित किया था। कर्बला की त्रास्दी और हुसैन के बलिदान की छाप  महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह1917, नमक सत्याग्रह दांडी मार्च1930 एवं भारत छोड़ो आंदोलन 1942में नजर आती है। गांधी खुद कहते हैं, ”मैंने हुसैन से सीखा कि मज़लूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है।” राष्ट्रपिता सह स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा गांधी ने कहा था, ”अगर मेरे पास हुसैन जैसे 72 साथी होते तो मैं 24 घंटे में भारत को अंग्रेजों से मुक्त करा देता।”
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि इतना ही नहीं गांधी दुनिया भर में इस्लाम के प्रसार को हजरत इमाम हुसैन के बलिदान का एक नतीजा मानते हैं। हुसैन को महान संत बताते हुए वह कहते हैं, ”इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है जो एक महान संत थे”। महात्मा गांधी के अलावा हुसैन की शहादत को पंडित जवाहरलाल नेहरू, रबीन्द्रनाथ नाथ टैगोर और डॉ राजेंद्र प्रसाद भी याद कर चुके हैं। वर्तमान समय मे हजरत इमाम  हुसैन की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सदियों पहले थीं।  कर्बला के बलिदान को याद करते हुए वक्ताओं  ने कहा था, ”हम हज़रत इमाम हुसैन (अस) के बलिदानों को याद करते हैं और उनके साहस और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को याद करते हैं। उन्होंने शांति और सामाजिक समानता को बहुत महत्व दिया।”
  कर्बला के जंग की वजह सीरिया के  शासन यजीद ने खुद को खलीफा घोषित करने के बाद बेगुनाहों पर ज़ुल्म बरसाना शुरू किया। अपनी बात मनवाने के लिए किसी भी इंसान का कत्ल करा देना उसके लिए बहुत आसान था। बेजुर्म लोगों का हक छीनकर उनका शिकार करना यजीद शौक बनता जा रहा था। हजरत इमाम हुसैन के लिए यजीद की हरकतें गैर-इस्लामिक थीं, यही वजह थी उन्होंने उसे खलीफा मानने से भी इनकार कर दिया था।
तानाशाह यजीद ने पहले तो हुसैन को आदेश का पालन करने का फरमान भेजा। जब वह नहीं माने तो 680 ईसवी में इराक के कर्बला में हजरत इमाम हुसैन  और उनके 71 साथियों को शहीद कर दिया गया। इसके बाद इमाम हुसैन की बेटी जैनब ने हजरत इमाम हुसैन एवं कर्बला की शहीदों पर यजीद के सैनिकों द्वारा मानवता के विरुद्ध अपराध एवं मानव अधिकारों के  जघन्य कृत्य  को विश्व पटल पर रखा। जिससे सुनकर आज के अन्याय के दरबार हिल जाते। देखते ही देखते कुछ ही दिनों में यजीद का शासन समाप्त हो गया । सत्य की जीत हुई एवं असत्य हार गया।

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