इलहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सात साल कम सजा वाले अपराधों में रूटीन तरीके से गिरफ़तारी नहीं करने के नियम का सख्ती से पालन किया जाए। कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट को भी निर्देश दिया है कि गिरफ्तारी पर पुलिस रिपोर्ट पर संतुष्ट होने पर ही पुलिस रिमांड देने का आदेश दें। कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41(1)बी व 41ए में सात साल से कम सजा वाले अपराधों में सामान्यतय: गिरफ्तारी नहीं करने का नियम है।
इसमें शर्तो का पालन करते हुए जरूरी होने पर ही अभियुक्त की गिरफ्तारी करने का निर्देश दिया है। इस नियम का पालन सख्ती के साथ होना चाहिए। इसकी अनदेखी कर अनावश्यक गिरफ़तारी करने वाले पुलिस कर्मियों के विरुद्ध हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना करने की कार्यवाही की जाएगी। कोर्ट ने कहा है कि पुलिस व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं सामाजिक व्यवस्था के बीच संतुलन कायम करे।
कोर्ट ने प्रदेश के डीजीपी ,विधि सचिव व महानिबंधक को आदेश की प्रति व परिपत्र सभी पुलिस थानों के अनुपालनार्थ भेजने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति डा. के जे ठाकर तथा न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने एटा के विमल कुमार व तीन अन्य की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने याची को अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने की छूट दी है।
मामला दहेज उत्पीड़न का है। आरोप है कि याची ने अपनी सगाई में साढे छ: लाख रुपये दहेज लिया। इसके बाद क्रेटा कार की मांग पूरी होने पर ही शादी करने की शर्त रख दी।जिस पर कोतवाली नगर ,एटा में 28 नवंबर 20को दहेज उत्पीड़न की प्राथमिकी दर्ज कराई गई। पुलिस तब से याची को तलाश रही है।
याची का कहना था कि धारा 41(1)बी की शर्तो व सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के तहत बिना ठोस कारण के सात साल से कम सजा वाले अपराधों के आरोपियों की रूटीन गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। इसके बावजूद पुलिस एफ आई आर दर्ज होते ही कानूनी उपबंधों की अवहेलना करते हुए गिरफ्तारी करने के लिए दबिश देने लगती है।जो कानून के विपरीत है।
इस धारा मे आरोपी को हाजिरी के लिए दो सप्ताह का नोटिस देने तथा साक्ष्य व पर्याप्त वजह होने पर ही गिरफ्तार करने का अधिकार है। सामान्यतया पुलिस सात साल से कम सजा वाले अपराध के आरोपियों की रूटीन गिरफ्तारी नहीं कर,सकती।
कोर्ट ने मजिस्ट्रेटों को भी रूटीन रिमांड न देने का निर्देश जारी किया है। और कहा है कि बिना ठोस कारण के पुलिस की अभियुक्त को गिरफ्तार करने की रिपोर्ट जिला एवं सत्र न्यायाधीश के मार्फत महानिबंधक को भेजी जाए ताकि मनमानी करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की जा सके। कोर्ट ने जिला न्यायाधीश को निर्देश दिया है कि प्रशासन के साथ मासिक बैठक में इसकी जानकारी दी जाय।
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