बेतिया, 3 जून। कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते निर्धारित समय पर पंचायत चुनाव न होने की स्थिति में पंचायतों के कार्यकाल को आगे बढ़ाने की व्यापक लोकतांत्रिक मांग को ठुकराते हुए भाजपा-जदयू सरकार ने पंचायतों को खत्म करके नौकरशाही राज कायम करने की तैयारी कर ली है.यह भाजपा जदयू सरकार द्वारा आपदा का अवसर के रूप में इस्तेमाल करने का तरीका है। उक्त बयान भाकपा माले राज्य कमिटी सदस्य सुनील कुमार यादव ने कहा, आगे कहा कि नीतीश सरकार के इस तानाशाही फैसला के खिलाफ बेतिया, बैरिया, मझौलिया, चनपटिया, सिकटा, मैनाटाड, गौनहां, नरकटियागंज, राम नगर, बगहा एक और दो, मधुबनी आदि अंचलों के सैकड़ों गावों में भाकपा माले के कार्यकर्ताओं ने विरोध दिवस मनाया,
भाकपा माले नेताओं ने कहा कि नीतीश सरकार एक अध्यादेश के जरिए इस काम को अंजाम देगी । इसके लिए मौजूदा पंचायती कानून की धारा 14, 39, 66 और 92 में संशोसधन किया गया है। इसके जरिए पंचायत,पंचायत समिति,जिला परिषद और ग्राम कचहरी में परामर्श दर्शी समिति गठन की जाएगी। दरअसल ये परामर्श दर्शी समितियां नौकरशाहों के कामकाज के लिए होंगी। कहा गया है कि विकास कार्य के लिए इसका गठन किया जाएगा।
बहरहाल पंचायती संस्थाएं ग्रासरूट स्तर पर निर्वाचित लोकतांत्रिक संस्थाएँ हैं। यह सिर्फ विकासमूलक संस्थाएँ नहीं है।इसके स्थापना व निर्माण के मूल में जमीनी स्तर तक लोकतन्त्र का विस्तार करना है। लिहाजा इसमें कोई भी परिवर्तन को अंजाम देते समय इसके गठन के मूल-लोकतांत्रिक उद्देश्य व लोकतांत्रिक भावना को अवश्य ध्यान में रखना था। इस लिहाज से मौजूदा समय में इसके कार्य काल को विस्तार देना ही सबसे ज्यादा ठीक व उचित था। मगर सरकारी कदम इसके गठन के लोकतांत्रिक उद्देश्य व भावना के बिल्कुल विपरीत नौकरशाही/तानाशाही कदम है।
हमें झारखंड से सीखना चाहिए जहां कोरोना के चलते ही पंचायत के कार्यकाल को छह महीने तक बढ़ा दिया गया है। लेकिन हम भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार से सिख ले रहे हैं जहां पिछले साल पंचायत को नौकरशाही के हवाले किया गया था।
सरकार ने जो कदम उठाया है उसका व्यावहारिक परिणाम भी जरा देखिए। नम्बर वन, ढाई लाख से अधिक निर्वाचित जनप्रतिनिधि पंचायत के विकास सम्बन्धी कामकाज से बंचित हो जाएंगे। नम्बर दो, आरक्षण कोटा से आए निर्वाचित जनप्रतिनियों के अधिकार का क्या होगा?
कुल मिलाकर नेताओं ने कहा कि सरकार को इस घोर प्रतिगामी दिशा की ओर जाने की बजाय पंचायतों के कार्यकाल को छह महीने तक बढ़ाए। इसमें कोई अड़चन नहीं है।
सरकार के घोर प्रतिगामी कदम का तमाम लोकतांत्रिक व प्रगतिशील शक्तियों ने डटकर विरोध किया।
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