भी होना जरूरी है, इसे दबाएं नहीं,ज्वर रोग उन्मूलन में निभाता है महत्वपूर्ण भूमिका।
जीवाणु और विषाणु के संक्रमण के दौरान होने वाला ज्वर रोग उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि ज्वर संबंधित भ्रांतियां लोगों को ज्वर नाशक यानी बुखार को दबाने वाली दवाएं लेने के लिए प्रेरित करती हैं। इसका असर कोरोना काल में भी देखने को मिला। लोगों ने बुखाबुखारर की दवाओं का जमकर सेवन किया। मामूली बुखार में तुरंत दवा लेकर उसे दबा दिया, जो सही नहीं है। चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू स्थित सीईएमएस (प्रायोगिक औषध एवं शल्य अनुसंधान केंद्र) असिस्टेंट प्रोफेसर डा. समर सिंह के अनुसार, ज्वर हमें रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता 10 गुणा तक बढ़ा देता है। इसी को ध्यान में रखकर डा. समर ने डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के जर्नल को पत्र भेजा है।
बुखार दबाने पर 100-200 गुना तक बढ़ जाती है वायरस की संख्या:-
डा. समर ने इस बात पर चिंता जताई है कि भारत में डाक्टरों, मेडिकल स्टाफ के बीच इस विषय में पर्याप्त जानकारी की कमी है। उनका कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान तो देश की कुछ स्वास्थ्य एजेंसियों ने बुखार में दवा लेने के डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित 39 डिग्री सेल्सियस तापमान के पैरामीटर को घटाकर 37.8-39 डिग्री कर दिया। इसके कारण लोगों ने जमकर दवाओं का सेवन किया, जबकि वायरस जनित बीमारियों से लडऩे में बुखार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसका कारण यह है कि बुखार में शरीर का तापमान बढ़ जाता है और वायरस के हमले से लडऩे के लिए हमारे शरीर की क्षमता बढ़ जाती है। वहीं अगर शुरू में ही दवा लेकर बुखार को दबा दिया जाए तो तीन दिन में वायरस की संख्या 100 से 200 गुना तक बढ़ जाती है।
102.2 डिग्री के ऊपर को भी बुखार मानता है डब्ल्यूएचओ:-
डा. समर बताते हैं कि डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी दिशा निर्देश केवल 102.2 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर के ज्वर पर ही रोकने की सलाह देता है। वह भी कोई पीड़ा हो तक। वहीं खुद आइसीएमआर ( भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ) ने भी 2019 में 103. डिग्री फारेनहाइट के ऊपर होने के बाद ही ज्वर के उपचार को जरूरी बताया है। डा. समर ने बताया कि हमें किसी भी महामारी में रोगाणु जनित बुखार को रोकने की कोशिश नहीं कर उस कारण का निदान करने का प्रयास करना चाहिए, जिसकी वजह से बुखार हुआ है। बुखार को अनायास रोकना हमारे लिए हितकारी नहीं है। हां, अगर बुखार अधिक बढ़े तो चिकित्सक की परामर्श लेकर उपचार करा सकते हैं।
चालीस करोड़ वर्ष से हमारे साथ है बुखार :-
डा. समर के अनुसार बुखार वास्तव में 40 करोड़ से भी अधिक वर्षों से हमारे साथ है और विभिन्न रोगों से बचाता रहता है। सभी जानवरों में यह समाप रूप से विद्यमान है और एक सहायक की भूमिका निभा रहा है। खरगोश पर किए कए अध्ययन में पाया गया है कि यदि उनमें ज्वर नहीं आने दिया गया तो 66 फीसद खरगोश रोगाणुजनित रोग के कारण काल के गाल में समाज जाते हैं। वहीं अगर उनमें नैसर्गिक रूप से बुखार आने दिया गया तो कोई खरगोश नहीं मरा। इससे अधिक और क्या प्रमाण हो सकता है, जो बताता है कि बुखार हमारे लिए कितना जरूरी है। कहा जा सकता है कि बुखार रोगाणुजनित रोगों से निदान पाने के लिए हमारे शरीर में ब्रह्मास्त्र है।
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