बेतिया, 28 जुलाई। भाकपा -माले के संस्थापक महासचिव कामरेड चारु मजूमदार के शहादत दिवस पर जिले के बैरिया में सुनील कुमार राव, जोखू चौधरी,विनोद कुशवाहा,हारून गद्द , मझौलिया में जवाहर प्रसाद,रीखी साह, सुरेश शर्मा,महाराज महतो, श्री महतो, चनपटिया में योगेन्द्र यादव,भरत ठाकुर दिनेश गुप्ता, अनारूल, धर्म कुशवाहा,नरकटियागंज में मुखतार मियां,नजरें आलम, , गौनहां लालजी यादव,नन्दू मुखिया, मैनाटाड में अच्छे लाल राम,सीताराम राम, सुबास चंन्द कुशवाहा,बरवा परसौनी में इन्द्र देव कुशवाहा,लक्षण राम,सिकटा मे राजन गुप्ता, वीरू श्रीवास्तव, बेहरा में गनेश महतो, नन्दलाल राम, संजय राम, सरगटिया में संजय मुखिया,इसलाम अंसारी, सौकत अली, कलाम अंसारी,बगहा-1 में भिखारी प्रसाद, बगहा-2 में परसुराम यादव,नरेश माझी,नेउर उरांव, रामनगर में राम अवध राय आदि के नेतृत्व में दर्जनों स्थानों पर भाकपा -माले कार्यकर्ताओं ने संकल्प सभा का आयोजन किया, संकल्प सभा को संबोधित करते हुए नेताओं ने कहा की कामरेड चारु मजूमदार को बिमारी की हालत में गिरफ्तार कर कलकत्ता के लाल बाजार थाना में बन्द कर ,दवाई बन्द कर अमानवीय जुल्म कर और तड़पा- तड़पा कर उनकी हत्या कर दी गई थी । कॉमरेड चारु ने कहा था कि जनता के स्वार्थ ही पार्टी का स्वार्थ है, नेताओं ने कहा कि कॉमरेड चारु मजमुदार हमारी क्रांतिकारी विरासत हैं जो हमे लगातार संघर्ष करने को प्रेरणा देते हैं,
आज कॉमरेड चारु मजूमदार की हिरासत में हत्या के 49 साल पूरे हो रहे हैं और भाकपा (माले) के पुनर्गठन के 47 साल पूरे हो रहे हैं। आज उस 70 के तूफानी दशक के करीब 50 साल पूरे होने वाले हैं जिसका अंत 1975 में आपातकाल लगाने से हुआ था। आज एक बार फिर राज्य आपातकाल के दौर वाले दमनकारी चेहरे के साथ फिर से हाजिर है। यह उत्पीड़न और क्रूरता के मामले में अंग्रेजों के शासन को भी मात दे रहा है। मोदी- शाह की जोड़ी राजनीतिक, समाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, प्रोफेसरों, छात्रों को गिरफ्तार कर जेलों में बंद कर रहीं है, जेलों में हत्या तक किया जा रहा है, ऐसे दौर में राजनीतिक कैदियों की रिहाई, अंग्रेजों के समय के राजद्रोह कानून और आजादी के बाद के यूएपीए जैसे खूंखार कानूनों को रद्द करने की मांग एक बार फिर लोकप्रिय विमर्श का हिस्सा बन रही है। नागरिकता कानून में भेदभावपूर्ण संशोधन को वापस लेने, विनाशकारी कृषि कानूनों को रद्द करने, नये श्रम कानूनों को रद्द करने और श्रम अधिकारों की गारंटी करने, निजीकरण और मंहगाई पर रोक लगाने, मजदूरी बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा करने, कोविड से हुई मौतों का मुआवजा देने, सबसे लिए शिक्षा व स्वास्थ्य की गारंटी करने की मांगें इस समय की मूल लोकतांत्रिक मांगें हैं। जिसकों लेकर मोदी-शाह के फासीवादी राज के खिलाफ निर्णायक जनान्दोलन का लिया संकल्प लिया।
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