पटना, 11 अक्टूबर। बेतिया स्थित सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया ,जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया, इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता एवं डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ने अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कहा कि प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है , विश्वभर में प्रथम अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर 2012 को मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 19 दिसंबर 2011 को इस बारे में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें बालिकाओं के अधिकारों एवं विश्व की उन अद्वितीय चुनौतियों का, जिनका कि वह मुकाबला करती हैं, को मान्यता देने के लिए 11 अक्टूबर 2012 को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया।
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की प्रेरणा कनाडियाई संस्था प्लान इंटरनेशनल के 'बिकॉज आई एम गर्ल' अभियान से मिली। इस अभियान के तहत वैश्विक स्तर पर लड़कियों के पोषण के लिए जागरूकता फैलाई जाती थी।
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का मकसद है बालिकाओं के मुद्दे पर विचार करके इनकी भलाई की ओर सक्रिय कदम बढ़ाना। गरीबी, संघर्ष, शोषण और भेदभाव का शिकार होती लड़कियों की शिक्षा और उनके सपनों को पूरा करने के लिए कदम उठाने पर ध्यान केंद्रित करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है।
बेटियां हमसे अपने हक के लिए लड़ रही हैं। चांद तक पहुंच चुकी दुनिया में, बालिकाओं की खिलखिलाहट आज भी उपेक्षित है। अपनी खिलखिलाहट से सभी को खुशी देने वाली लड़कियां आज भी खुद अपनी ही खुशी से महरूम हैं। आज भी वह उपेक्षा और अभावों का सामना कर रही हैं। गरीबी और रूढ़ियों के चलते लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता। लाख प्रतिभाशाली होने के बावजूद वह प्राथमिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पाती। कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती है या शादी करने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है। इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल ,डॉ शाहनवाज अली ,अमित कुमार लोहिया एवं पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी ने बेतिया चंपारण के महिलाओं के साथ चंपारण सत्याग्रह के अवसर पर 1917 एवं 1918 में बालिका शिक्षा ,बाल विवाह, एवं बालिकाओं की सुरक्षा के लिए बेतिया चंपारण की धरती पर जन जागरण अभियान के माध्यम से नई जागृति लाने का प्रयास किया था,
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनियाभर में बहुत-सी लड़कियां गरीबी के बोझ तले जी रही हैं ,लड़कियों को शिक्षा मुहैया नहीं हो पाती। दुनिया में हर तीन में से एक लड़की शिक्षा से वंचित है। लड़कियां आज लड़कों से एक कदम आगे हैं, लेकिन आज भी वह भेदभाव की शिकार हैं। विगत 2 वर्षों में कोरोना संक्रमण काल में बालकों के साथ ही बालिकाएं घरेलू हिंसा एवं उत्पीड़न की शिकार हुई हैं, बचपन बचाओ आंदोलन, कैलाश सत्यार्थी फाऊंडेशन, सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन, यूनिसेफ एवं सहयोगी संस्थाओं को चिंताजनक आंकड़े उपलब्ध हुए हैं,
बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी वह भेदभाव, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं। इसलिए लड़कियों को शिक्षित करना एवं समाज को जागरूक करना हमारा पहला दायित्व है और नैतिक अनिवार्यता भी। शिक्षा एवं सामाजिक जागरूकता से लड़कियां न सिर्फ शिक्षित होती हैं बल्कि उनके अंदर आत्मविश्वास भी पैदा होता है। वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती हैं साथ ही यह गरीबी दूर करने में भी सहायक होती है।
ज्ञात हो कि भारत सरकार विश्व के अनेक सरकारों एवं संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए काफी योजनाओं को लागू किया है, भारत सरकार ने 'बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ' एक उल्लेखनीय योजना है। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकार भी अन्य महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू कर रही है। भारत में भी 24 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।
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