राष्ट्रीय युवा दिवस एवं स्वामी विवेकानंद की 160 वी जन्मदिवस पर पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों ने की अपील।

 

 


पटना,12 जनवरी।   सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में विजुअल कार्यक्रम के माध्यम से विश्व स्वास्थ संगठन एवं भारत सरकार द्वारा जारी  ओमिक्रोन उन्मूलन गाइडलाइन का पालन करते हुए स्वामी विवेकानंद 160 वी जन्म दिवस सह राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया, इस अवसर पर ब्रांड एंबेसडर स्वच्छ भारत मिशन सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अमित कुमार लोहिया, डॉ शाहनवाज अली ने संयुक्त रूप से स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 160 वर्ष पूर्व 12 जनवरी 1863 को भारत के महान विचारक युगपुरुष स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था, भारत की स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ अमृत महोत्सव वर्ष पर हमें भारत के महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद की 160 वी जन्म दिवस एवं अमृत महोत्सव  मनाने का अवसर प्राप्त हो रहा है ,भारत की स्वाधीनता आंदोलन एवं भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन पर स्वामी विवेकानंद के विचारों का गहरा प्रभाव रहा है,  स्वामी विवेकानंद  का आधुनिक भारत के निर्माण में योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता , भारत सरकार ने 12 जनवरी 1984 को प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। नोबेल पुरस्कार विजेता सह महान स्वतंत्रता सेनानी रविंद्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी ,बाल गंगाधर तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे अनेक महान स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वामी विवेक विवेकानंद के जीवन दर्शन से प्रेरणा हासिल किया था , अहिंसा अपनाने वाले महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस ,हेमचंद्र घोष जैसे क्रांतिकारी नेता, सभी ने विवेकानंद की विराट देशभक्ति से बराबर प्रेरणा प्राप्त की। उन्होंने तो अरविंद घोष पर भी गहरा आध्यात्मिक प्रभाव डाला और बाद में वह श्री अरविंद बन गए।

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन पर स्वामी विवेकानंद के प्रभाव का वर्णन स्वयं राष्ट्रवादियों ने किया है। गांधीजी जब 1901 में पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लेने कलकत्ता पहुंचे तो उन्होंने स्वामी जी से मिलने का प्रयास भी किया था। अपनी आत्मकथा में गांधी लिखते हैं कि उत्साह में वह पैदल ही बेलुर मठ पहुंच गए। वहां का दृश्य देखकर वह विह्वल हो गए मगर यह जानकर बहुत निराश हुए कि स्वामी जी उस समय कलकत्ता में थे और बहुत बीमार होने के कारण किसी ने मिल नहीं रहे थे। यह शायद 1902 के आरंभ की बात होगी। कुछ ही दिनों बाद  स्वामी जी ने देह त्याग दी। बाद में 30 जनवरी 1921 को महात्मा गांधी ने बेलुर मठ में स्वामी विवेकानंद की जयंती के समारोह में हिस्सा लिया। उनसे कुछ कहने का आग्रह किया गया और वह हिंदी में बोले। उन्होंने कहा कि “उनके हृदय में दिवंगत स्वामी विवेकानंद के लिए बहुत सम्मान है। उन्होंने उनकी कई पुस्तकें पढ़ी हैं और कहा कि कई मामलों में उनके इस महान विभूति के आदर्शों के समान ही हैं। यदि विवेकानंद आज जीवित होते तो राष्ट्र जागरण में बहुत सहायता मिलती। किंतु उनकी आत्मा हमारे बीच है और उन्हें स्वराज स्थापना के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए। महात्मा गांधी ने कहा  कि  सबसे पहले अपने देश से सबको प्रेम करना  चाहिए और उनका इरादा एक जैसा होना चाहिए।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ