बिहार, बंगाल एवं नेपाल में आए 1934 के भीषण भूकंप महाप्रलय की 88 वी वर्षगांठ पर भूकंप मे मारे गए लोगों के सम्मान में सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन ,





पटना, 15 जनवरी।  बिहार ,बंगाल एवं नेपाल मे आए भीषण भूकंप महाप्रलय की 88 वर्ष पूरे होने पर विजुअल कार्यक्रम के माध्यम से एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया ,जिसमें आज से 88 वर्ष पूर्व 15 जनवरी 1934 को मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई, जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया, इस अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अमित कुमार लोहिया एवं डॉ शाहनवाज अली ने संयुक्त रूप से कहा कि15 जनवरी 1934 की दोपहर बिहार में आई भूकंप की प्रलय लीला को आज की नई पीढ़ी ने भले ही नहीं देखा, लेकिन उस प्रलय की कहानी आज की नई पीढ़ी भी जानती है। भूकंप की तबाही का जिक्र बिहार के हर घर में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक लगभग बिहार में मरने वालों की संख्या लगभग 11000 से ऊपर थी। 8.4 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाली भूकंप न पहले कभी आई थी न आज तक आई है। हर तरफ तबाही का माहौल था। तबाही इतनी थी कि धन-बल की भी भारी क्षति हुई थी. खेतों एवं घरों में दरारें पड़ गई थी और चारों ओर हाहाकार मचा था। प्रलय से उठी चीख देश ही नहीं पूरी दुनिया तक पहुंची। यही कारण रहा कि देश के अलग अलग हिस्सों से कई राजनीतिक व सामाजिक संगठन लोग मदद के लिए बिहार पहुंचने लगे। अंग्रेजी शासन भी बिहार की तबाही देख भौचक्क रह गए। मुजफ्फरपुर दरभंगा मुंगेर एवं चंपारण मलवे में इस तरह तब्दील हो गया कि उस वक्त के शीर्ष नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, डा राजेंद्र प्रसाद, डा संपूर्णानंद पंडित मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू, खान अब्दुल गफ्फार खान, यमुना लाल बजाज, आचार्य कृपलानी जैसे लोगों ने  आकर राहत कार्य में सहयोग दिया । इस महाप्रलय से बेतिया पश्चिम चंपारण  भी अछूता न रहा भूकंप का सबसे ज्यादा असर बेतिया के (ऐतिहासिक किंग एडवर्ड 7 हॉस्पिटल जो आज महारानी जानकी कुंवर गोरमेंट मेडिकल कॉलेज नाम से जाना जाता है) बेतिया का ऐतिहासिक चर्च, ऐतिहासिक मीना बाजार, ऐतिहासिक राज स्कूल, ऐतिहासिक जंगी मस्जिद, ऐतिहासिक काली मंदिर, बेतिया राज की ऐतिहासिक महल ,बेतिया का मिशन स्कूल, बेतिया रेलवे स्टेशन जैसे अनेक ऐतिहासिक इमारतों को भूकंप के झटकों से अत्यधिक हानि पहुंची थी । उस वक्त बेतिया राज के अंग्रेज प्रबंधक  ने इस बात को समझा और शहर को फिर से नइ तकनीक के आधार पर बसया। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ इंग्लैंड से बुलाया गया एवं वैज्ञानिक विधि से शहर के ऐतिहासिक भवनों का निर्माण पुनः कराए गया जिसमें बेतिया का ऐतिहासिक महारानी जानकी कुंवर हॉस्पिटल बेतिया का ऐतिहासिक चर्च ऐतिहासिक मीना बाजार जैसे अनेक भवनों का निर्माण फिर से कराया गया, शहर की सड़कें चौड़ी की गई। हर सड़क को एक दूसरे से जोड़ दिया गया।  हर सड़क को एक दूसरे से जोड़कर  चौराहा स्थापित किया गया । अलग बात है कि इन दिनों बेतिया शहर की सड़क व चौक चौराहे अतिक्रमणकारियों की चपेट में है। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के डॉ एजाज अहमद एवं नवीदू चतुर्वेदी ने संयुक्त रूप से कहा कि भूकंप की घटना को 88 वर्ष जरूर बीत गए, लेकिन चंपारण समेत बिहार में इस हादसे में मृत हुए लोगों को आज भी याद करते है। हर वर्ष 15 जनवरी को पूरा बिहार अपने पुरखों को याद करता है। प्रत्येक वर्ष सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है इस अवसर पर वक्ताओं ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि बेतिया पश्चिम चंपारण समेत पूरे भारतवर्ष में भारत की स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ अमृत महोत्सव के अवसर पर आपदा क्लीनिक 10,000 बेडो  की क्षमता की स्थापित किया जाए ताकि आने वाले भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं से लोगों के जीवन को सुरक्षित किया जा सके

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