देश की पहली मुस्लिम महिला फातिमा शेख एवं सावित्रीबाई फुले के योगदान को याद करें नई पीढ़ी।

 



    बेतिया, 09 जनवरी। बिहार राज्य स्थित सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत की प्रथम महिला मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख की 191 वी जन्मदिवस पर विजुअल कार्यक्रम के माध्यम से एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया ,जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया, इस अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली ,जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अमित कुमार लोहिया ,नविंदु चतुर्वेदी एवं पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने भारत की प्रथम मुस्लिम महिला फातिमा शेख, सावित्रीबाई फुले,  उन हजारों महिलाओं एवं विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने समाज के उपेक्षित वर्ग के बच्चों एवं बच्चियों के लिए शिक्षिका फातिमा शेख एवं सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर शिक्षा की कड़ी बन शिक्षा को समाज के उपेक्षित वर्ग तक पहुंचाया , सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर इन्होंने देश में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए अहम काम किए ,  सावित्रीबाई को देश की पहली महिला शिक्षिका के तौर पर याद किया जाता है. उन्हें देश की पहली मुस्लिम शिक्षिका माना जाता है. 

फातिमा शेख ने लड़कियों, खासकर दलित और मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को शिक्षित करने में सन्‌ 1848 के दौर में अहम योगदान दिया था.फातिमा शेख ने समाज सुधारक ज्योति बा फुले और सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर सन् 1848 में स्वदेशी पुस्कालय की शुरुआत की थी. यह देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है. फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 को पुणे में हुआ था. 

सावित्रीबाई फूले की जब नौ वर्ष की उम्र में 13 वर्षीय ज्योतिबा फुले के साथ शादी कर दी गई थी तब उनकी जिंदगी एकदम बदल गई. ज्योतिबा पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे थे और सभी को शिक्षा दिलाने के हिमायती थे. उन्होंने सावित्री को भी शिक्षा दिलाई. इसके बाद दोनों ने मिलकर हाशिए पर खड़े समाज के लोगों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया. ये बात उनके पिता जी को पसंद नहीं आई और उन्हें घर से निकाल दिया गया. जब फूले दंपत्ति को शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए उनके पिता ने घर से निकाल दिया था तब फातिमा ने ही उन्हें अपने घर में जगह दी थी. 

फातिमा अपने भाई के साथ रहती थीं. दोनों भाई-बहन ने ना सिर्फ फुले दंपत्ति के लिए अपने घर के दरवाजे खोले बल्कि उनका पूरा साथ भी दिया. सावित्रीबाई और फातिमा ने मिलकर दलित और मुस्लिम महिलाओं और उनके बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. इन्हें इनके धर्म और लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित रखा जाता था. उस दौराना फातिमा खुद घर-घर जाकर बच्चों को अपने घर में बनी लाइब्रेरी तक लाती थीं ताकि वे बच्चे पढ़ सकें. 

इसकी वजह से उन्हें कई लोगों का गुस्सा और प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी, लेकिन फिर भी वह रुकी नहीं. हालांकि भारतीय इतिहास में लंबे समय तक फातिमा का ये योगदान नजरअंदाज ही रहा, मगर साल 2014 में उर्दू की टेक्सटबुक्स में जब उनका नाम शामिल किया गया तब उनके योगदान एक बार फिर लोगों के सामने आए. इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल, डॉ शाहनवाज अली ,अमित कुमार लोहिया एवं पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने कहा कि भारतीय इतिहास में ऐसे बहुत सारी महिलाओं ने विभिन्न कालों में समाज को जागृत करने एवं शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए कार्य किया है, सल्तनत कालीन समाज, मध्यकालीन समाज एवं आधुनिक भारतीय समाज में  महिलाओं के समाज के लिए किए गए अतुल्य  योगदान को उजागर करने के लिए सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा शोध कार्य किया जा रहा है,

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