नारी सशक्तिकरण एवं नागरिक अधिकारों के लिए समर्पित रहा महान स्वतंत्रता सेनानी सरोजनी नायडू का जीवन।

 


बेतिया, 13 फरवरी।  सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत की स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष पर भारत की महान स्वतंत्रता सेनानी सरोजनी नायडू के जन्म दिवस के अवसर पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया इस अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एंबेसडर सहा सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता एवं डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत की महान स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू अमर शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 के दिन श्री अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एवं श्रीमति वरदा सुंदरी के घर एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ जिसे सरोजनी नाम दिया गया। मेधावी बुद्धि की धनी सरोजनी ने बारह वर्ष की कोमल आयु में ही मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी। 

सरोजिनी नायडू जालियांवाला बाग हत्याकांड से भी इस कदर आहत हुई थीं कि उन्हें 1908 में जो कैसर-ए-हिंद सम्मान मिला था, उसे ब्रिटिश हुकूमत को लौटाने में जरा भी देरी नहीं की।

स्वतंत्रता आंदोलन में  शामिल होकर सरोजनी नायडू का देश के शीर्ष नेतृत्व से सीधा संपर्क हो गया और वे गांधी, नेहरू, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे विश्वप्रसिद्ध नेताओं के साथ ही सीपी रामा स्वामी अय्यर, गोपाल कृष्ण गोखले, मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट जैसे नेताओं के साथ खड़े होकर स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए तैयार हो गईं।

वर्ष 1906 में उन्होनें गोपाल कृष्ण गोखले के कलकत्ता अधिवेशन के भाषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1915 -18 की अवधि में सरोजनी नायडू ने आज़ादी की मशाल को घर-घर पहुंचाने के लिए पूरे भारत का 18 बार भ्रमण किया था। 1919 में गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधी जी के दाहिने हाथ के रूप में उन्होंने काम किया था।

इसी वर्ष वो होम रूल के मामले को विश्व मंच पर लाने के लिए इंग्लैंड गईं। इसके बाद 1922 से गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर सरोजनी नायडू ने अपने जीवन में सदा के लिए खादी वस्त्रों को स्थान दे दिया। महिला सशक्तिकरण की ताकत को पहचानते हुए सरोजनी ने महिला अधिकारों के समर्थन में अपनी आवाज उठाई और इसके लिए छोटे शहरों से लेकर बड़े राज्यों तक अलख जगाने का काम किया।

फारसी भाषा में सरोजिनी नायडू ने मेहर मुनीर नामक एक नाटक की रचना की थी। नीलांबुज, द ब्रोकन विंग, ट्रेवलर्स सांग और द बर्ड ऑफ टाइम जैसी पुस्तकें भी सरोजिनी नायडू ने लिखी हैं।

अपनी योग्यता और क्षमता के आधार पर उन्हें 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया। अध्यक्ष पद की गरिमा के साथ न्याय करते हुए सरोजनी ने स्वतन्त्रता आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में रहते हुए गांधी जी के साथ जेल यात्रा भी की थी। 1928 में स्वतन्त्रता आंदोलन के यज्ञ में गांधीजी की प्रतिनिधि के रूप में अमरीका गईं और वहाँ भारत की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया। 1942 में जब गांधी जी ने भारत छोड़ो का बिगुल बजाया था, तब ब्रिटिश सरकार ने सरोजनी नायडू को 21 महीने के लिए कारावास में रखा था। आगा खां महल में उन्हें कैद करके अंग्रेजों ने रखा।भारत कोकिला’ की उपाधि से सुसज्जित सरोजनी नायडू ने आज़ादी के बाद भी देश सेवा में अपने जीवन को लगाए रखा और 1949 में अपने गवर्नर के पद पर काम करते हुए उनका देहांत हो गया था। इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल डॉक्टर शाहनवाज अली एवं पश्चिम चंपारण कला मंच संयोजक शाहीन परवीन नई आह्वान करते हुए कहा कि महान स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू के जीवन दर्शन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।

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