तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की 63 वर्ष पूर्व भारत आगमन के अवसर पर , कार्यक्रम का हुआ आयोजन।

 




पटना,30 मार्च।  तिब्बत के आध्यात्मिक नेता ने चीनी सरकार द्वारा यातना एवं उत्पीड़न से तंग आकर दलाई लामा ने शांति अहिंसा एवं तिब्बती सांस्कृतिक पहचान बचाने के लिए भारत का रुख किया था, आज ही के दिन 30 मार्च 1959 को दलाई लामा लगभग 1महीने के दुर्लभ यात्रा के बाद भारत पहुंचे थे। दलाई लामा तब से भारत में रहे हैं, जब 1959 में, तिब्बत से भागकर दलाई लामा  ने स्थानीय आबादी के सहयोग से भागे थे। तिब्बत सरकार का निर्वासन सरकार , भारत के हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से संचालित होता है। भारत में 1,60,000 से अधिक तिब्बती रहते हैं।इस अवसर पर , अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ,डॉ शाहनवाज अली, वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल, अमित कुमार लोहिया , नवीनदू चतुर्वेदी एवं पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन संयुक्त रुप से कहा कि नोबेल पुरस्कार विजेता दलाई लामा ने अपनी शांति अहिंसा मानवता एवं दया के माध्यम से दुनिया को प्रेरित किया है। तिब्बतियों और उनकी विरासत के लिए संघर्ष के प्रतीक के रूप में है ,1959 से अब तक स्वतंत्रता में तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा और तिब्बतियों की मेजबानी करने के लिए सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विश्व की सभी संस्थाएं भारत को धन्यवाद देते हैं, और तिब्बत की स्वाधीनता की कामना करते हैं। "दलाई लामा आशा के दूत हैं, जिनका आध्यात्मिक मार्गदर्शन विश्व शांति अहिंसा और करुणा को आगे बढ़ाने, धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने, मानव अधिकारों को सुरक्षित रखने और तिब्बती लोगों की भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण बल रहा है," इस अवसर पर वक्ताओं ने अपील करते हुए कहां कि‌ संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व की सरकारों से  पुनः अपील करते हैं तिब्बत में लोकतंत्र बहाली के लिए उचित कार्यवाही करें ताकि दलाई लामा अपने देश लौट सके, जिसका सपना विगत 63 वर्षों से दलाई लामा एवं तिब्बती लोग देख रहे हैं।

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