महात्मा गांधी के नेतृत्व में दांडी मार्च नमक सत्याग्रह पूर्ण होने की वर्षगांठ एवं भारत की स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष पर छात्र-छात्राओं ने लिया स्वच्छता पर्यावरण संरक्षण सिंगल यूज प्लास्टिक का बहिष्कार एवं विभिन्न सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति का संकल्प।

 


 पश्चिम चंपारण, 06 अप्रैल।  देश में समुंद्र एवं नदियों के किनारे एकत्र होकर सांकेतिक रूप से बनाया था स्वदेशी नमक।

महात्मा गांधी के 72 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ दांडी मार्च नमक सत्याग्रह पूर्ण होने की वर्षगांठ एवं भारत की स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगांठ आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया इस अवसर पर सर्वप्रथम महात्मा गांधी कस्तूरबा गांधी अमर शहीदों एवं उन 72 स्वतंत्रता सेनानियों  को श्रद्धांजलि अर्पित की गई जिन्होंने दांडी मार्च नमक सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इस अवसर पर छात्र छात्राओं ने स्वच्छता पर्यावरण संरक्षण जलवायु परिवर्तन की रोकथाम सिंगल यूज प्लास्टिक के बहिष्कार एवं विभिन्न सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति का संकल्प लिया इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सहा सचिव डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ,डॉ शाहनवाज अली ,अमित कुमार लोहिया ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल ने संयुक्त रूप से कहा कि

यह वह दौर था जब देश आजादी के लिए हुंकार भर रहा था. हर किसी के दिल में देश की स्वाधीनता के लिए अलग तरह की कसक थी. कसक ऐसी जो कभी भी एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकती थी।महात्मा गांधी अपने आदर्शों व मूल्यों के बदौलत  पूरी तरह से सब के नेता बन चुके थे।. चंपारण सत्याग्रह 1917 के साथ एवं बाद में भी कई वर्ष बाद तक गांधी जी ने अपने को समाज सुधार कार्यों पर केंद्रित रखा. वह सक्रिय राजनीति से पूरी तरह से दूर रहे. लेकिन जब वह दोबारा आंदोलन में सक्रिय हुए तब उन्होंने न केवल ब्रिटिश सरकार की बल्कि पूरी दुनिया  की आत्मा को झकझोर दिया था।

मार्च 1930 की है जब गांधी जी ने नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नया सत्याग्रह चलाया जिसे 12 मार्च से 6 अप्रैल तक दांडी मार्च नमक आंदोलन ( के रूप में लगातार 24 दिनों तक 400 किलोमीटर का सफर अहमदाबाद (साबरमती आश्रम) से दांडी, गुजरात तक चलाया गया ताकि स्वयं नमक उत्पन्न किया जा सके. नमक ऐसी चीज है जिसका इस्तेमाल गरीब से लेकर हर अमीर करता है. पशुओं को खिलाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. ऐसी सर्वव्यापी एवं सार्वकालिक वस्तु को आजादी के आंदोलन से जोड़ना ही गांधी विचार एवं कर्म की विशिष्टता है। इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल अमित कुमार लोहिया एवं अल बयान के संपादक डॉ सलाम ने संयुक्त रूप से कहा कि

दांडी की ओर इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया. लगभग तीन हफ्तों बाद गांधी जी अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचे और मुट्‌ठी भर नमक बनाकर स्वयं को कानून की निगाह में अपराधी बना दिया. इसी बीच देश के अन्य भागों में समानांतर नमक यात्राएं अयोजित की गईं. बापू की कर्मभूमि बेतिया पश्चिम चंपारण भी नमक सत्याग्रह मैं अछूता नहीं रहा। बेतिया पश्चिम चंपारण के नदियों के किनारे हजारों की संख्या मेंएकत्र होकर स्वतंत्रा सेनानियों ने सांकेतिक रूप से नदियों के किनारे स्वदेशी नमक का निर्माण किया।महात्मा गांधी  के इस आन्दोलन को जगह-जगह से समर्थन मिलने लगा. भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भेजा. इस आंदोलन का प्रभाव इतना रहा कि इसकी चिंगारी की लपट ने आगे चलकर सविनय अवज्ञा आंदोलन की आधारशिला रखी‌। महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह एवं दांडी मार्च नमक सत्याग्रह विश्व के अनेक हिस्सों में स्वाधीनता एवं नागरिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन के माध्यम से लोगों को प्रेरित किया है।

2011 में अमेरिका की मशहूर पत्रिका टाइम ने वर्ष 1930 में महात्मा गांधी  के नेतृत्व वाले दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह) को दुनिया को बदल देने वाले 10 महत्वपूर्ण आंदोलनों की सूची में दूसरे स्थान पर रखा है। टाइम पत्रिका ने नमक सत्याग्रह के बारे में लिखा कि भारत पर ब्रिटेन की लंबे समय तक चली हुकूमत कई मायने में चाय, कपड़ा और यहां तक की नमक जैसी वस्तुओं पर एकाधिकार कायम करने से जुड़ी थी. टाइम पत्रिका के अनुसार दांडी यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में बापू के समर्थक उनके साथ जुड़ गए थे. रिपोर्ट में टाइम ने लिखा कि महात्मा गांधी  एवं उपस्थित जनसमुदाय ने समुद्र से नमक बनाया. इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि महात्मा गांधी के विचार आज भी विश्व में वास्तविक खुशहाली लाने के लिए प्रासंगिक हैं।

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