पवित्र मोहर्रम की 10वीं तारीख आशूर के दिन पर दिया विश्व शांति मानवता सत्य अहिंसा एवं आपसी प्रेम का संदेश।

 


बेतिया, 9 अगस्।  सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में पवित्र मोहर्रम की दसवीं तारीख  आशूरा के दिन एवं हजरत इमाम हुसैन एवं उनके 72  साथियों की शहादत दिवस पर कार्य विश्व शांति सत्य अहिंसा एवं आपसी प्रेम का संदेश देते हुए अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, अमित कुमार लोहिया ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल, सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन एवं अल बयान के संपादक डॉ सलाम ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 10 मोहर्रम  आशूर के दिन 13 अक्टूबर 680 ई को कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए  ‌। यजिदि साम्राज्य का शासन लगभग विश्व के दो तिहाई हिस्से पर था ।यजिद एवं यजिदि साम्राज्य  का जुल्म सितम कर्बला तक ही सीमित न रहा ।हजरत इमाम हुसैन एवं उनके 72 साथियों की शहादत के बाद मक्का एवं मदीना शहर को नष्ट करने का आदेश  यजिद ने दिया। यजीदि साम्राज्य द्वारा 3 दिनों तक मदीना शहर में कत्लेआम किया गया। जिसमें लगभग 300 से ज्यादा सहाबी ए रसूल एवं 1000 से ज्यादा ताबेईनो को यजीदि साम्राज्य के सेनाओ द्वारा शहीद किया गया। साथ ही मस्जिद-ए-नबवी की बेहुरमति की गई ।मदीना शहर के बाद मक्का शहर में  कत्लेआम शुरू किया गया।  यजीदी सेना द्वारा  खाना ए काबा  की बेहुरमति की गई एवं खाना ए काबा में आग लगा दी गई थी । महिलाओं एवं बच्चियों को यातनाएं दी गई एवं उन का नरसंहार किया गया ।यजिद के जुल्म से पूरी मानवता कांप उठी। यजीद पर ईश्वर का अज़ाब आ गया।यजिद को एक भयानक बिमारी हो गयी जिस कारण यजीद बिमारी का गिरफ्तार हो गया, यजिद की बिमारी का यह हाल था की कौलेंज की बिमारी के कारण यह हाल था कि उसकी आंते जलने लगी थी. वहां के हाकिम परेशान होकर कहने लगे " यह कैसी बत्तरिन बिमारी " है कि इसमें पेत अन्दर से जल रहा था ?इस बिमारी के कारण यजीद को इतनी प्यास लगती थी कि वह पानी के लिए तरसता था लेकिन जब यजिद पानी पीता था तो वही पानी यजिद के पेट को जलाता था.इस कारण यजिद अपना सर पिटता रहता था और उसके महल के लोग यजीद को देखकर यह कहते थे कि यह अजाब हुसैन इब्न अली को प्यासा रखने के बदौलत है.यजीद वकत का बादशाह होने के बाद भी, पानी की एक एक बूंद के लिए तरसता था, जब यजीद अपनी बिमारी की इन्तहा को पहुच गया तो अपने बेटे को बुलाकर कहा कि बेटा, मेरा अब कुछ भरोसा नहीं, मुझे मौत कभी भी आ सकती है.इसलिए अब तू मेरे तख़्त को संभाल यानी अब तू मेरे तख़्त पर बैठ जा लेकिन यजिद का बेटा मुआविया तख़्त पर बैठने के लिए राजी नहीं हुआ. और यजीद से कहने लगा - कि जैसे जमाना आप पर लानत कर रहा है वैसे ही मुझ पर भी लानत करे, नहीं, हरगिज नहीं, मैं इस तख़्त पर नहीं बैठूँगा.यह तख़्त नवासे रसूल के खून से आलूदा है, इसलिए मैं इस तख़्त पर लानत करता हूँ, इसके बाद यजीद की बिमारी और भी बढ़ गयी और अरब के हर किस्म के नशे, यजिद के सामने पेश किया जाने लगा ताकि यजीद को बिमारी का दर्द महसूस न हो, और वह हर वक्त नशे में रहे, और वह प्यास के लिए तड़पे न.इसी नशे की हालत मन यजीद अपने सिपाहिओ से कहने लगा, मेरा वह बन्दर कहाँ है जो हमेशा मेरे साथ रहता है, तो फिर सिपाहिओ ने कहाँ की शायद वह जंगल की तरफ गया होगा.यजीद अपने सिपाहियों के साथ घोड़े पर बैठकर जैसे ही बाहर गया तो घोड़े ने नवासे रसूल के कातिल को अपने पीठ से गिरा दिया और यजीद का पाँव घोड़े के रकाब में फंस गया, वह घोडा दौड़ता रहा और यजीद जमीन पर गिरते हुए उसका सिर एक पत्थर से जा टकराया, मगर वह घोडा न रुका.यहाँ तक कि यजीद का पूरा जिस्म खून से लतपथ हो गया, यजीद की फ़ौज ने, जब यजीद की लाश को देखा तो वह कहने लगे, हुसैन इब्ने अली के खून की यही सजा है.यजिद इस तरह बहुत ही जिल्लत की मौत मरा जबकि कर्बला में इमाम हुसैन का रोजा चमकता हुआ वहां पर आज भी मौजूद है और वहां पर लोगो का ताता लगा रहता है, मगर यजीद की कब्र कहाँ है ?तो आपको बता दे यजीद की कब्र मजुले दमस्क में है, यह जगह दम्शक में है, जहाँ लोग कूड़ा फेकते है और इस कूड़े के नीचे कही यजीद की कब्र है, मगर निशान भी नहीं कहाँ है, लेकिन इतना पता है की इस कूड़े के नीचे ही कही यजीद की कब्र है।

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