उर्दू के महान शायद एवं साहित्यकार फिराक गोरखपुरी के जन्मदिवस पर कार्यक्रम का आयोजन ।

                        



बेतिया, 28 अगस्त। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में उर्दू के महान शायद एवं साहित्यकार फिराक गोरखपुरी के जन्म दिवस पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया ।जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस  एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल, सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी एवं अलबयान के  संपादक डॉ सलाम ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि फिराक गोरखपुरी का जन्म आज ही के दिन 28 अगस्त 1896को हुआ था। गोरखपुरी ने अपने साहित्यिक जीवन का आरंभ ग़ज़ल से किया था। अपने साहित्यिक जीवन के आरंभिक समय में 6 दिसंबर, 1926 को ब्रिटिश सरकार के राजनीतिक बंदी बनाए गए थे। उर्दू शायरी का बड़ा हिस्सा रूमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता से बँधा रहा है, जिसमें लोकजीवन एवं प्रकृति के पक्ष बहुत कम उभर पाए । फ़िराक़ जी ने परंपरागत भावबोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उनके यहाँ सामाजिक दुख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर शायरी में ढला है। दैनिक जीवन के कड़वे सच और आने वाले कल के प्रति उम्मीद, दोनों को भारतीय संस्कृति एवं लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फ़िराक़ जी ने अपनी शायरी का अनूठा महल खड़ा किया। फ़ारसी, हिंदी, ब्रजभाषा और भारतीय संस्कृति की गहरी समझ के कारण उनकी शायरी में भारत की मूल पहचान रच-बस गई है।

फ़िराक़ गोरखपुरी ने बड़ी संख्या  में रचनाएँ की थीं। उनकी शायरी बड़ी उच्चकोटि की मानी जाती हैं। वे बड़े निर्भीक शायर थे। उनके कविता संग्रह 'गुलेनग्मा' पर 1960 में उन्हें 'साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला और इसी रचना पर वे 1969 में भारत के एक और प्रतिष्ठित सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किये गये थे। उन्होंने एक उपन्यास 'साधु और कुटिया' और कई कहानियाँ भी लिखी थीं। उर्दू, हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा में उनकी दस गद्य कृतियाँ भी प्रकाशित हुई हैं। फ़िराक़ गोरखपुरी की कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं। महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में पहली बार गजल लिखकर ही वह जेल गए थे। तब उन्हें मलाका जेल में रखा गया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के शिक्षक रहे फिराक गोरखपुरी से जुड़े कई संस्मरण अब भी दोहराए जाते हैं। महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में स्वदेश के संपादकीय में उनकी जो पहली गजल छपी, उसका मिसरा था -जो जबाने बंद थीं आजाद हो जाने को हैं...।

 27 फरवरी 1921 को पहली बार फिराक गिरफ्तार हुए। इसके बाद उन्हें शहर की मलाका जेल में रखा गया। रिहाई के बाद को पं. जवाहर लाल नेहरू ने स्वराज भवन में इंटर सेक्रेटरी नियुक्त कर दिया था। स्वराज भवन में उन्हें रहने के लिए एक कमरा भी दिया गया। 1927 तक वह इंटर सेक्रेटरी के पद पर रहे। सरस्वती पत्रिका के संपादक रविनंदन सिंह बताते हैं कि यहां से हटने के बाद 1930 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उन्हें प्राध्यापक की नौकरी मिल गई।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ