सीमा पार बाल तस्करी उन्मूलन ,बाल मजदूरी उन्मूलन ,घरेलू हिंसा की रोकथाम ,बाल विवाह एवं विभिन्न सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति का संकल्प।





               

 नई दिल्ली, 14 नवंबर।  सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन  बाल दिवस पर शहीद स्मारक मे किया गया। जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया। इस अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एंबेसडर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ,डॉ शाहनवाज अली, डॉ कुमार लोहिया ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल ,सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने संयुक्त रूप से कहा कि प्रत्येक वर्ष पूरे भारतवर्ष में बाल दिवस भारत के प्रथम प्रधानमंत्री सह भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित जवाहर नेहरू के बच्चों से अत्यधिक प्रेम एवं राष्ट्र की धरोहर के रूप में सम्मान पूर्वक उनके जन्मदिवस पर बाल दिवस समर्पित है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1925 में पहले विश्व बाल कल्याण सम्मेलन के लिए विभिन्न देशों के प्रतिनिधि जिनेवा, स्विटजरलैंड में एकजुट हुए थे। इस सम्मेलन के बाद कुछ सरकारों ने बच्चों की समस्याओं को रेखांकित करने के लिए एक दिन तय करने का निर्णय लिया। चूंकि किसी स्पष्ट तारीख की अनुशंसा नहीं की गई थी इसलिए सभी देशों ने अपनी संस्कृति को ध्यान में रखते हुए इसके लिए एक तारीख तय की। दुनिया के कुछ देशों (यूएसएसआर के पूर्व घटक) में 1950 से 1 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस  के रूप में मनाया आरम्भ  किया था।

वर्ष 1954 में दुनिया में पहली बार 20 नवंबर को विश्व बाल दिवस  को सार्वभौमिक बाल दिवस  के रूप में स्थापित किया गया। विश्व बाल दिवस तय कर दिए जाने के बाद सदस्य देशों ने बच्चों के, भले ही वे किसी भी जाति, रंग, लिंग, धर्म या देश के हों उनके दुलार, प्रेम, पर्याप्त भोजन, चिकित्सा, निःशुल्क शिक्षा तथा हर तरह के शोषण से सुरक्षा के साथ वैश्विक शांति और भाईचारे वाले वातावरण में बढ़ने के अधिकार को मान्यता दी।

इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि भारत में बाल दिवस

बच्चों को देश का भविष्य मानने वाले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बच्चों से विशेष स्नेह रखते थे और बच्चे भी उन्हें प्यार से चाचा नेहरू कहते थे। उन्हें चाचा नेहरू कहे जाने से जुड़ी कई बातें कही जाती हैं। इनमें से एक के अनुसार बच्चों के प्रति दोस्ताना रवैया रखने के कारण बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहते थे। ऐसा भी माना जाता है कि महात्मा गांधी के निकट होने के कारण इनको चाचा की संज्ञा मिली क्योंकि ये महात्मा गांधी के काफी  करीब थे और महात्मा गांधी को सब बापू कहते थे, ऐसे में  पं. नेहरू को चाचा की संज्ञा मिली। पंडित नेहरू बच्चों को किसी देश की वास्तविक शक्ति और समाज की बुनियाद मानते थे। पं. नेहरू ने कहा था, आज के बच्चे भावी भारत का निर्माण करेंगे। हम जिस तरह से उनका पालन-पोषण करेंगे उसी पर देश का भविष्य निर्भर होगा।

भारत में 1959 से बाल दिवस मनाया जा रहा है । 27 मई, 1964 को पं. जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु होने के बाद इनकी स्मृति में इनके जन्म दिवस यानि 14 नवंबर को भारत में बाल दिवस मनाए जाने की शुरुआत हुई। पंडित नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाना चाचा नेहरू का बच्चों के प्रति प्रेम और उनके प्रति बच्चों के लगाव को चिह्नित करने का एक प्रयास है। अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि आज बच्चों का जीवन असुरक्षित है ।विगत 2 वर्षों में कोरोना संक्रमण मानव जीवन को बदल के रख दिया ।विगत दिनों सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन, कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन, बचपन बचाओ आंदोलन एवं इनसे जुड़े अनेक संस्थाओं ने यह महसूस किया है कि बच्चों एवं बच्चियों का जीवन सुरक्षित नहीं है। भारत के सीमावर्ती राज्यों द्वारा भारत के बाहर बच्चों को देह व्यापार, बाल दुराचार, सीमा पार बाल तस्करी, बाल मजदूरी,  बाल विवाह  एवं घरेलू हिंसा जैसे अनेक घटनाएं हमे  देखने  में आई हैं ।यह आंकड़े चिंताजनक है। बच्चे एवं बच्चियां पर अनेक घरेलू हिंसा के मामले प्रकाश में आए हैं जो सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय है। इन घटनाओं को सामाजिक जागृति एवं जन चेतना के माध्यम से ही  रोका जा सकता है। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन, कैलाश सत्यार्थी फाऊंडेशन, बचपन बचाओ आंदोलन एवं अनेक संस्थाएं बापू की कर्म भूमि बेतिया पश्चिम चंपारण में  इस सामाजिक  कुरीतियों के उन्मूलन लिए जन जागरण अभियान चला रही है। हम आशा करते हैं कि आने वाले दिनों में हम बापू ,कस्तूरबा गांधी, अमर शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों एवं अपने पुरखों के खुशहाल भारत का सपना पूरा कर पाएंगे।

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