भारत की स्वाधीनता के बाद ऐतिहासिक भितिहरवा आश्रम को 80 चरखा देकर पुनः जीवंत किया था चरखा एवं खादी ग्राम उद्योग ।
पटना, 8 फरवरी। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी एवं तीसरे राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन की 126 वी जन्मदिवस पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ,बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया ।इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ,डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया ,सामाजिक कार्यकर्ता नवीदू चतुर्वेदी ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि चंपारण की धरती से डॉ जाकिर हुसैन का गहरा लगाव रहा है। देश की स्वाधीनता के बाद 1964 में बेतिया पश्चिम चंपारण का दौरा किया था। साथ ही भारत की स्वाधीनता के बाद चंपारण में पुनः चरखा एवं खादी ग्राम उद्योग को जीवन्त रूप देने चंपारण के ऐतिहासिक भितिहरवा आश्रम का दौरा किया था। ऐतिहासिक भितिहरवा आश्रम को 80 चरखा उपलब्ध कराया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि
8 फरवरी, 1897 को जन्मे जाकिर हुसैन को 1967 में देश का तीसरा और पहला मुस्लिम राष्ट्रपति बनाया गया. राष्ट्रपति पद संभालने के दो साल बाद ही 3 मई, 1967 को उनकी मृत्यु हो गई। 1962 में उन्हें भारत रत्न एवं मृत्यु के बाद उन्हें 1983 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।जाकिर हुसैन ने 13 मई साल 1967 को भारत के तीसरे के तौर पर शपथ ली थी. राष्ट्रपति बनने से पहले जाकिर हुसैन उप राष्ट्रपति के पद पर नियुक्त थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री चाहती थीं ।
उन्हें एक सफल राष्ट्रपति होने के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भी जाना जाता है। जाकिर एक युवा समूह के नेता बन गए जिसने बाद में मिलकर 29 अक्टूबर, 1920 को अलीगढ़ में नैशनल मुस्मिल यूनिवर्सिटी की स्थापना की।
1925 में यह यूनिवर्सिटी नई दिल्ली के करोल बाग में आ गई. 10 सालों बाद यूनिवर्सिटी का स्थान एक बार फिर बदला और ये स्थायी रूप से नई दिल्ली के जामिया नगर में स्थापित हो गई.
ये वही यूनिवर्सिटी है जिसे आज सेंट्रल यूनिवर्सिटी जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है. इस यूनिवर्सिटी को आज भारत में उच्च शिक्षा के लिए प्रमुख संस्थानों में गिना जाता है।
जाकिर ने अपना पूरा जीवन देश की एकता, सामाजिक न्याय और सभी के लिए शिक्षा को समर्पित कर दिया था. उनका मानना था कि शिक्षा समाज का स्तर ऊपर उठाने में सबसे शक्तिशाली हथियार है. उन्होंने साक्षरता और ज्ञान को फैलाने में जीतोड़ प्रयास किए.जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी उनके इसी इरादे की जीती जागती मिसाल है. जाकिर उस समय महज 23 साल के थे जब उन्होंने संस्थान की शुरुआत की थी।
जाकिर आगे इकनॉमिक्स में पीएचडी करने के लिए जर्मनी गए थे, लेकिन उन्हें यूनिवर्सिटी का अकादमिक और प्रशासनिक नेतृत्व संभालने के लिए जल्द भारत वापस लौटना पड़ा।
यूनिवर्सिटी तो 1927 में बंद होने की कगार पर थी लेकिन उनके प्रयासों की बदौलत ये आज भी युवाओं को शिक्षित कर रही है. ये उनके प्रयास ही थे जिनकी बदौलत भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने में यूनिवर्सिटी का अहम योगदान माना जाता है।
1930 के दौरान भारत में हुए कई शैक्षणिक सुधारों में डॉक्टर जाकिर सक्रिय सदस्य रहे थे. भारत जब आजाद हुआ तो उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बना दिया गया. वहां उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया और इस तरह वो 1956 में सांसद बन गए।
हालांकि, वो एक साल तक ही राज्यसभा के सदस्य रह पाए. उसके बाद उन्होंने बिहार का गवर्नर बना दिया गया. जाकिर 1957 से 1962 तक इस पद पर बने रहे।
शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में गवर्नर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद 1962 में ही उन्हें भारत का उप राष्ट्रपति बना दिया गया. जाकिर आजाद भारत के दूसरे उप राष्ट्रपति थे।
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