चंपारण सत्याग्रह के महानायक पंडित राजकुमार शुक्ल की 148 वी जन्मदिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि।



 महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय पंडित राज कुमार शुक्ल की 148वी जन्म दिवस पर वृक्षारोपण।                         चंपारण सत्याग्रह के महानायक पंडित राजकुमार शुक्ल अमर शहीदो एवं स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान मे स्थापित हो विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय संग्रहालय।                              

बेतिया, 23 अगस्त। शहीद स्मारक बेतिया पश्चिम चंपारण में चंपारण सत्याग्रह के महानायक पंडित राजकुमार शुक्ल की 148 वी जन्मदिवस पर पंडित राजकुमार शुक्ल, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ,अमर शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया , मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट की निदेशक एस सबा ,डॉ अमानुल हक, डॉ महबूब उर रहमान, सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन  ने संयुक्त रुप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज से 148 वर्ष पूर्व 23 अगस्त 1875 ई0 को पंडित राजकुमार शुक्ल जन्म हुआ था। इस अवसर पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा वूक्षारोपण किया गया।

उनका सारा जीवन मातृभूमि की स्वाधीनता एवं समाज को सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति दिलाने के लिए रहा। 1897 ई0 मे महारानी जानकी कुंवर को अपदस्थ कर अंग्रेजों ने बेतिया राज को कोर्ट ऑफ वांडर्स के अंतर्गत कर दिया। चंपारण का यह भूभाग को कोर्ट ऑफ़ वर्ड्स के अंतर्गत आने पर अंग्रेजों के अत्याचार एवं यातना में बढ़ोतरी हो गई। अंग्रेजों ने चंपारण के लोगों पर 42 तरह के असंवैधानिक कर लगाए थे, साथ ही साथ जबरन नील की खेती कराई जाती थी।

जिससे किसानों का खेत बंजर हो जाता है एवं कई सालों तक उस पर फसल नहीं उगते थे। पंडित राजकुमार शुक्ल ,पीर मोहम्मद मुनीश एवं शेख गुलाब के नेतृत्व में नील की खेती के अभिशाप एवं चंपारण में अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध किसानों एवं मजदूरों को लामबंद होने का अवसर मिला। शेख गुलाब ,पंडित राजकुमार शुक्ल एवं पीर मोहम्मद  मुनीश के प्रयासों ने महात्मा गांधी को चंपारण की धरती पर आने पर मजबूर कर दिया।

22 अप्रैल 1917 की शाम 5 बजे भारतीय इतिहास का वह दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बेतिया चंपारण के ऐतिहासिक हजारीमल धर्मशाला पहुंचे एवं वही अपना सत्याग्रह कार्यालय स्थापित किया। अंग्रेजों के अत्याचार से त्रस्त चंपारण में किसानों ने उम्मीदों की किरणें देखी थी। महात्मा गांधी ने राजकुमार शुक्ल, पीर मोहम्मद मुनीश एवं उनके साथियों के साथ सत्याग्रह अहिंसा एवं आपसी प्रेम के जरिए किसानों को कई समस्याओं से मुक्ति दिलाई थी।

देखते देखते चंपारण विश्व फलक पर पहुंच गया।  बापू के साथ चंपारण का नाम यू दर्ज हुआ कि 106 वर्ष बाद भी वो यहां जिंदा है। चंपारण की फिजाओं में  महात्मा गांधी ,पीर मोहम्मद मुनीश एवं राजकुमार शुक्ला को महसूस किया जा सकता है। चंपारण की धरती अन्याय के विरुद्ध आंदोलन की धरती है।

पंडित राजकुमार शुक्ल, पीर मोहम्मद मुनीश, शेख गुलाब, शेख़ शेर मोहम्मद, शीतल राय ,संत रावत, अकलु देवान जैसे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयास से किसानों ने अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध ऐतिहासिक हजारीमल धर्मशाला में 16 जुलाई 1917 एवं 17 जुलाई 1917 को ऐतिहासिक राज हाई स्कूल में चंपारण जांच कमेटी के समक्ष अंग्रेजों के जुल्म की दास्तां दर्ज कराई थी। ऐतिहासिक मीना बाजार के दुकानदारों ने तन मन धन से सत्याग्रह में साथ दिया था।

इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद, डॉ अमानुल हक,बिहार विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के डॉ0 शाहनवाज अली ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि पंडित राजकुमार शुक्ल ,अमर शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में बेतिया पश्चिम चंपारण में एक विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय संग्रहालय का निर्माण कराया जाए।

साथ ही 10 हजार बेड का आपदा क्लीनिक स्थापित किया जाए। ऐतिहासिक हजारीमल धर्मशाला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए। ऐतिहासिक मीना बाजार एवं राज हाई स्कूल के छात्रावास  को संरक्षण प्रदान किया जाए ,यही होगी शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सरकार द्वारा सच्ची श्रद्धांजलि।

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