संयुक्त किसान मोर्चा का मौसम की प्रतिकूलता के बावजूद बेतिया समाहरणालय पर विशाल प्रदर्शन,राष्ट्रपति को जिला पदाधिकारी के माध्यम से संयुक्त किसान मोर्चा , पश्चिम चंपारण द्वारा 16 सूत्री स्मार पत्र दिया गया ।





चंपारण, 09 अगस्त।  ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ हमारे ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम के प्ररेणाप्रद और ऊर्जावान आह्वान की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए 9 अगस्त को पूरे देश में “भारत छोड़ो दिवस” मनाया जाता है। इस साल, हम, भारत के किसान और खेतिहर मजदूर, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की चली आ रही कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के विरोध में “कॉर्पोरेट लुटेरों, भारत छोड़ो, खेती छोड़ो” की मांग के लिए अपनी सामूहिक आवाज उठा रहे हैं।

केंद्र सरकार हमारे राष्ट्रीय संसाधनों जैसे जंगल, नदी और अन्य जल संसाधन और कृषि भूमि पर कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण को बढ़ावा देने के लिए एकाधिकारवादी मित्र पूँजीपतियों के साथ साजिश रच रही है, जिससे किसानों का एक बड़ा वर्ग, जो भारत की आबादी का लगभग 52% हैं,  बर्बाद हो रहा है। उन्हें अपने जीवन और आजीविका से उखाड़ फेंका और विस्थापित किया जा रहा है और उन्हें प्रवासी श्रमिक बनने, और गुलामों जैसी परिस्थितियों में रहने और काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

हम भारत के किसान और खेतिहर मजदूर आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं कि केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों के नवउदारवादी नीतियों और असंवेदनशील प्रशासन के कारण भारत में लाखों किसान परिवार गंभीर रूप से कंगाली और बदहाली के शिकार हो रहे हैं।

एक ओर डब्ल्यूटीओ और आसियान जैसी बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के तहत मुक्त व्यापार समझौतों ने घरेलू बाजार में किसानों को मिलने वाली आवश्यक सुरक्षा को नष्ट कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप नकदी फसल की कीमतों में प्रणालीगत और लंबी गिरावट आई है। वहीं दूसरी ओर बीज, उर्वरक, कीटनाशक, बिजली, सिंचाई और पानी की आपूर्ति सहित सभी इनपुट सब्सिडी को खत्म किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन की लागत में भारी वृद्धि हुई।

2020-21 में राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के नेतृत्व में साल भर चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को तीन कॉर्पोरेट समर्थक कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया था और प्रधानमंत्री को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी थी। इन कानूनों का उद्देश्य कृषि भूमि, कृषि बाजारों और अनाज सहित कृषि उपज, जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक है, पर सीधे नियंत्रण के माध्यम से कॉर्पोरेट मुनाफाखोरी को सुविधाजनक बनाना था।

केंद्र सरकार ने 9 दिसंबर 2021 को एसकेएम के साथ एक लिखित समझौता किया था, जिसमें सभी फसलों और उसकी खरीद के लिए कानूनी रूप से गारंटीकृत सी2+50% की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य, ऋण मुक्ति, बिजली निजीकरण विधेयक को वापस लेना सहित किसानों और खेतिहर मजदूरों की कई न्यायसंगत और लंबित मांगों के समाधान का वादा किया गया था। हालाँकि, 19 महीने बाद भी, प्रधानमंत्री उन वादाओं को पूरा करने के इच्छुक नहीं हैं जो उनकी सरकार ने किसानों को लिखित रूप में दी थी। यह रवैया केंद्र सरकार के सत्तावादी और अलोकतांत्रिक चरित्र को रेखांकित करता है।

हाल ही में आयी बाढ़ और भूस्खलन ने हिमालय की पहाड़ियों और मैदानी भाग को तबाह कर दिया है। 160 लोगों की जान चली गई, हजारों घर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए, लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि और खड़ी फसलें जलमग्न हो गईं, हजारों मवेशी, छोटे जुगाली करने वाले जानवर और मुर्गियों का नुकसान हुआ। एसकेएम पुरजोर मांग करता है कि इस तबाही को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाय। नुकसान का आकलन करने के लिए तुरंत अधिकारियों को तैनात किया जाए और बिना किसी देरी के उचित मुआवजा दिया जाए। एसकेएम मांग करता है कि इस तरह का मुआवजा, खड़ी फसलों के नुकसान के लिए 70,000 रुपये प्रति एकड़, जीवन के नुकसान के लिए 10 लाख रुपये, पूरी तरह से क्षतिग्रस्त मकानों के लिए 5 लाख रुपये, मवेशियों के नुकसान पर 1 लाख रुपये, छोटे जुगाली करने वाले जानवरों के नुकसान पर 25,000 रुपये और मुर्गी पालन के नुकसान पर 500 रुपये प्रति मुर्गी से कम नहीं होना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने किसानों और आम लोगों के दुखों को कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है, जिसे तुरंत उठाया जाना चाहिए था।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली अक्षम और असंवेदनशील केंद्र सरकार, जो पूरी तरह से कॉर्पोरेट शक्तियों के चंगुल में है, के हाथों किसानों द्वारा सामना किए जा रहे सभी भौतिक कारकों और अनुभवों पर सावधनीपूर्वक विचार करने के बाद, भारत के किसानों के पास निम्नलिखित मांगों के लिए पूरे भारत में बड़े पैमाने पर फिर से संघर्ष शुरू करने और तेज़ करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है:

1) गारंटीकृत खरीद की व्यवस्था के साथ सभी फसलों के लिए सी2+50% की दर से लाभकारी एमएसपी के लिए कानून लागू किया जाए। एमएसपी कानून बनाने के लिए स्पष्ट संदर्भ की शर्तों के साथ एसकेएम के प्रतिनिधियों को शामिल करके किसानों के उचित प्रतिनिधित्व के साथ एमएसपी पर समिति का पुनर्गठन किया जाए।

2) सरकार की नीतियों और लापरवाही के कारण ऋणग्रस्तता के जाल में फसे सभी कृषक परिवारों के लिए माइक्रो-फाइनेंस और निजी ऋण सहित सभी प्रकार के कर्ज से मुक्ति के व्यापक ऋण मुक्ति योजना लागू किया जाए।

3) बिजली संशोधन विधेयक 2022 को वापस लिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि बिजली कनेक्शन न काटी जाए, प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 300 यूनिट मुफ्त बिजली प्रदान की जाए, पानी पंपों के लिए मुफ्त बिजली प्रदान की जाए और कोई प्रीपेड मीटर न लगाया जाए।

4) लखीमपुर खीरी में पत्रकार और किसानों के नरसंहार के मुख्य साजिशकर्ता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त किया जाए और उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाए।

5) लखीमपुर खीरी में जेल में बंद किसानों पर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लिया जाए और उन्हें रिहा किया जाए।

6) ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान भाजपा शासित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों सहित सभी राज्यों में किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए सारे लंबित मामलों को वापस लिया जाए।

7) ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसान परिवारों को मुआवजा दिया जाए और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।

8) ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसानों के लिए सिंघू बॉर्डर पर भूमि आवंटित किया जाए और एक स्मारक का निर्माण किया जाए।

9) कॉर्पोरेट समर्थक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को वापस लिया जाए और जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, फसल संबंधी बीमारियों आदि के कारण किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सभी फसलों के लिए एक व्यापक फसल बीमा योजना लागू किया जाए।

10) सभी मध्यम, लघु और सीमांत पुरुष और महिला किसानों और कृषि श्रमिकों के लिए प्रति माह 10,000 रुपए की किसान पेंशन योजना लागू की जाए।

11) सभी भूमिहीनों को 5 डिसमिल वासगीत जमीन तथा मकान दिया जाय।

12) बटाईदारों का निबंधन कर बटाईदार किसानों को सभी तरह की सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाय।

13) बिहार में बंद पड़े सभी चीनी मिलों को चालू किया जाय, किसानों के बकाए राशि का ब्याज सहित भुगतान किया जाय।

14) मनरेगा को कृषि कार्य से जोड़ते हुए मनरेगा मजदूरों को 200 दिन काम तथा 600 रुपए दैनिक मजदूरी दिया जाय।

15) भूमि सुधार कानून के तहत 5 अदालतों में लंबित 83 भू हदबंदी वादों का शीघ्र न्याय देने तथा भूमि वितरण आदेश की पत्रों पर अविलंब कारवाई किया जाए।

16) ए पी एम सी अधिनियम को पुन: बहाल कर , कृषि बाजार समितियों को बिहार में चालू किया जाए।

          अपनी बात समाप्त करने से पहले, हम विनम्रतापूर्वक कहना चाहते हैं कि मणिपुर में आदिवासी महिलाओं और आदिवासी लोगों के साथ जो हुआ । उसने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। एसकेएम ने मणिपुर हिंसा पर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को बरखास्त करने और जल्द से जल्द शांति स्थापित करने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया था। हमने सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश के तहत सभी मुद्दों की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन का भी आग्रह किया था। हम इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की सराहना करते हैं।

हमें उम्मीद है कि आप देश भर के किसानों और खेतिहर मजदूरों की वास्तविक मांगों को समझेंगी और इन मांगों को पूरा करने के लिए उचित कार्रवाई करने के लिए सरकार को निर्देश देंगी। 

              प्रदर्शन का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा के पश्चिम चम्पारण जिला संयोजक प्रभुराज नारायण राव ,  किसान सभा के जिला मंत्री राधामोहन यादव , अध्यक्ष अशोक मिश्र, योगेंद्र शर्मा , जयंत दुबे , सुबोध मुखिया , ज्वाला कांत दुबे , बिहार राज्य किसान सभा के जिला अध्यक्ष रामा यादव ,  सचिव हरेंद्र प्रसाद, सुनील यादव , शंकर दयाल गुप्ता, शिवशंकर पाण्डेय , शिवनाथ राय, लोक संघर्ष समिति की अनिता , रामेश्वर प्रसाद  , लालबाबू राम , अनिल मंडल , अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के सुरेन्द्र प्रसाद , अखिल भारतीय खेत मजदूर किसान सभा के मानती राम , सी पी आई एम एल ( एस आर भाई जी) के सुवास प्रसाद , चांदसी प्रसाद यादव , खेतिहर मजदूर यूनियन के जिला मंत्री प्रभुनाथ गुप्ता , मनोज कुशवाहा , दोवा हकीम , सदरे आलम , अवधविहारी प्रसाद , बिहार राज्य ईंख उत्पादक संघ के अध्यक्ष लालबाबू प्रसाद यादव , जिला मंत्री म. वहीद , नौजवान सभा के राज्य उपाध्यक्ष म. हनीफ , जिला मंत्री सजीव राव , राजू बैठा , नौजवान संघ के तारिक अनवर , अंजारूल आदि ने सभा में अपनी बातों को रखा ।

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