केन्या के पास मेडिकल ऑक्सीजन नही थी, रेमेडेसिविर इंजेक्शन नही थे ... अनाज था ... उसने अनाज ही भेज दिया ।
वजह सिर्फ ये थी कि इस मुश्किल घड़ी में वह भारत के साथ खड़ा रहना चाहता था... ऑक्सीजन नही तो अनाज ही सही । *कल को जब इतिहास लिखा जायेगा तो कोई ये तो नही कह सकेगा कि जब दुनिया में आपदा आयी थी तो केन्या ने कुछ नही किया था ।
ये कहानी है एक छोटे से, जनजातीय आदिवासियों से भरे देश केन्या की ।
वहीं एक कहानी और भी है ...कुछ पढ़े लिखे विभिन्न प्रकार के लोगों की जो हमारे ही देश के है ...इन के पास ऑक्सीजन भी थी और इंजेक्शन भी लेकिन इन्होंने सब छुपा कर रखे ताकि लाशों का ढेर लग सकें ।
आज यही लोग केन्या और भारत दोनों का मजाक बना रहे है ...
*इसी छोटे से निर्धन और* *पिछड़े देश की एक और घटना*
केन्या द्वारा भेजे गए 12 टन अनाज पर बहुत से लोग मज़ाक उड़ा रहे है। *अब एक छोटा सा वाक़या सुनिए।
आपने #अमरीका का नाम सुना होगा, #मैनहैटन का भी, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का भी और #ओसामा_बिन_लादेन का भी। जो ज़्यादातर लोगों ने नहीं सुना होगा वो है 'इनोसाईन गाँव' जो पड़ता है *केन्या और #तंजानिया के बॉर्डर पर और यहाँ की लोकल जनजाति है 'मसाई'।
अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले की ख़बर #मसाई लोगों तक पहुचने में कई महीने लग गए।* ये ख़बर उन तक तब पहुँची जब उनके गाँव के पास के ही कस्बे में रहने वाली, #स्टेनफोर्ड_यूनिवर्सिटी की मेडिकल स्टूडेंट किमेली नाओमा छुट्टियों में वापस केन्या आयी और वहाँ की लोकल जनजाति मसाई को 9/11 का आंखों देखा हाल सुनाया।
कोई बिल्डिंग इतनी ऊंची हो सकती है कि वहाँ से गिरने पर जान चली जाए, झोपड़ी में रहने वाले मसाई लोगों के लिए ये बात अविश्वसनीय थी *मगर फिर भी उन लोगों ने अमरीकियों के दुःख को महसूस किया और उसी मेडिकल स्टूडेंट के माध्यम से केन्या की राजधानी नैरोबी में अमेरिकी दूतावास के डिप्टी चीफ़ विलियम ब्रांगिक को एक पत्र भिजवाया जिसे पढ़ने के बाद विलियम ब्रांगिक ने पहले हवाई जहाज का सफर किया, उसके बाद कई मील तक टूटी फूटी सड़क पर कठिनाई का रास्ता पर करते हुए मसाई जनजाति के गाँव पहुँचे।
गाँव पहुँचने पर मसाई जनजाति के लोग इक्कट्ठा हुए और एक कतार में 14 गायें ले कर अमरीकी दूतावास के डिप्टी चीफ़ के पास पहुँचे। *मसाईयों के एक बुज़ुर्ग ने गायों से बंधी रस्सी डिप्टी चीफ़ के हांथों पे पकड़ाते हुए एक तख़्ती की तरफ इशारा कर दिया। जानते हैं उस तख़्ती पर क्या लिखा था? लिखा था- "इस दुःख की घड़ी में अमरीका के लोगों की मदद के लिए हम ये गायें उन्हें दान कर रहे हैं"।* जी हाँ, उस पत्र को पढ़ कर दुनियाँ के सबसे ताकतवर और समृद्धि देश का राजदूत सैकड़ो मील चल कर चौदह गायों का दान लेने आया था।
गायों के ट्रांसपोर्ट की कठिनाई और कानूनी बाध्यता के कारण गायें तो नहीं जा पायीं मगर उनको बेंचकर एक मसाई आभूषण ख़रीद कर 9/11 मेमोरियल म्यूजियम में रखने की पेशकश की गई। जब ये बात अमरीका के आम नागरिकों तक पहुँची तो पता है क्या हुआ? उन्होंने आभूषण की जगह गाय लेने की ज़िद्द कर दी। ऑनलाइन पिटीशन साइन किये गए की उन्हें आभूषण नहीं गाय ही चाहिए, अधिकारियों को ईमेल लिखे गए, नेताओं से बात की गई और *करोड़ों अमरीका वासियों ने मसाई जनजाति और केन्या के लोगों को इस अभूतपूर्व प्रेम के लिए कृतज्ञ भाव से धन्यवाद दिया, उनका अभिनंदन किया।
12 टन अनाज को सहर्ष स्वीकार करिये। दान नहीं, दानी का हृदय देखिये,* कंकड़ नहीं, कंकड़ उठा कर सेतु में लगाने वाली गिलहरी की श्रद्धा देखिये।
साभार- सुखवाड़ा
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