कोरोना काल में मारे गए लोगों की याद मे भाकपा माले ने दिया श्रद्धांजलि।

 



बेतिया, 14 जून। देश भर के बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि के साझे रूप से कोविड-19 और अन्य सन्दर्भों में मारे गए लोगों का शोक मनाने के चल रहे अभियान के तहत रविवार शाम 8 बजे बेतिया काली बाग वार्ड नं 13 में  मृत सैयद सफदर आलम के निवास स्थान पर उनके पुत्र सैयद शादाब अंजूम के उपस्थिति में माले कार्यकर्ताओं ने कैंडल जलाकर सभी मृतकों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी. सैयद शादाब अंजूम ने कहा कि मेरे पापा को अस्पताल की लचर व्यवस्था ने हम लोगो से छीन लिया, सही समय पर सही दिशा में इलाज  हुआ होता तो मेरे पापा बच सकते थें,

भाकपा माले राज्य कमिटी सदस्य सुनील कुमार यादव ने कहा कि ‘अपनों की याद, हर मौत को गिनें - हर गम को बाँटें’ नाम से यह अभियान हर रविवार को आयोजित किया जाना है. इसी दौरान

 कोविड से अपनी जान  गंवा चुके सैयद सफदर आलम के घर पर आज कार्यक्रम आयोजित हुई है, 

इस मौके पर काॅ. सुनील कुमार यादव ने कहा कि कोरोना महामारी में जब सरकारों ने हाथ खींच लिए तब देश के नागरिकों ने एक दूसरे का हाथ थामकर कोविड-19 की चुनौतियों का सामना किया है. कोरोना वायरस, फंगस और लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण हमारे हजारों लोग मारे गए. कोविड पेशेंट के साथ-साथ बड़ी संख्या में डाॅक्टरों व अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की भी मौत हुई है. बिहार में सबसे अधिक डाॅक्टरों की मौत हुई है. जिन लोगों की पहचान कोविड पेशेंट के रूप में हो गई, उससे बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जिनका कोविड जांच ही नहीं हुआ, लेकिन उनके तमाम लक्षण कोविड के ही थे और वे भी मौत के शिकार हुए. इन तमाम मौतों को सरकार को कोविड से हुई मौत की श्रेणी में गिनना चाहिए. हम इस अभियान को इसलिए चला रहे हैं कि आने वाले दिनों में ऐसा दर्द फिर से न झेलना पड़े क्योंकि हम जानते हैं कि कोविड की तीसरी लहर फिर से आने वाली है. वही मोदी सरकार की तरह ही नीतीश सरकार भी कोविड से हुई मौत की संख्या को छिपाने का काम कर रहीं हैं, माले नेता ने कहा कि सही तस्वीर नहीं आने से आने वाले समय के लिए हम सही दिशा और उससे निपटने के लिए तैयारी नहीं कर सकते मगर सरकार मौत को छुपा रहीं हैं जो दूर्भाग्य पूर्ण है, 

इनौस जिला अध्यक्ष फरहान राजा ने कहा कि जिन्हें कोविड के अलावा कोई जानलेवा बीमारी थी - उनके लिए अस्पतालों में जगह न होने से उनकी जान गई. जलाने, दफनाने की जगह कम पड़ गई. गरीबों ने अपने आंसुओं के साथ अपनों को नदी में बहा दिया या नदी किनारे कफन डाल विदा किया. पूरा देश इस साझे दर्द को आज भी झेल रहा है. इसे हम याद कर रहे हैं, इस मौके पर आरिफ़ अलि, असरार, बाबू खादीम राजा। 



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