अमर शहीद शहीद-ए-आजम चंद्रशेखर आजाद की कर्म भूमि बेतिया पश्चिम चंपारण से शहादत दिवस पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एव विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि।

 



चंपारण,27 फरवरी। शहीद-ए-आजम चंद्रशेखर आजाद के शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया ।जिसमें विभिन्न धर्मों के बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ0 एजाज अहमद अधिवक्ता एवं डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड संयुक्त रूप से अमर शहीद शहीद-ए-आजम चंद्रशेखर आजाद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए थे।  अमर शहीद शहीद-ए-आजम चंद्रशेखर आजाद का राष्ट्रीय आंदोलन चम्पारण के बेतिया शहर से जुड़ा हुआ है। बेतिया के ‘क्रांतिकारी’ फणीन्द्र नाथ घोष ‘अखिल भारतीय क्रांतिकारी दल’ की कार्यकारिणी के प्रमुख सदस्य थे।इसी बेतिया में कमलनाथ तिवारी, केदार मणी शुक्ल, गुलाब चन्द्र गुलाली जैसे दर्जनों क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ी हुकूमत का जीना दुश्वार कर रखा था। काकोरी लूट-कांड के बाद देश में जगह-जगह छापे पड़े. बचते-बचाते 1925 के अंतिम दिनों में चंद्रशेखर आज़ाद बेतिया पहुंचे। घोष ने उन्हें बेतिया के जोड़ा इनार स्थित शिक्षक हरिवंश सहाय के घर पर ठहराया। हरिवंश, पीर मुहम्मद मूनिस के दोस्त थे और ये भी राज हाई स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ कानपुर से निकलने वाले ‘प्रताप’ अख़बार के लिए लिखते थे। सहाय को आज़ाद की मदद करने के जुर्म में इन्हें शिक्षक के पद से बर्खास्त कर दिया गया।

चन्द्रशेखर आज़ाद क़रीब एक महीने हरिवंश सहाय के घर ही रहें। उसके बाद वो 17 दिनों तक केदार मणि शुक्ल के घर रूके। कुछ दिनों नन्हकू सिंह के घर भी रहें। बाद में क्रांतिकारी गुलाब चन्द्र गुलाली ने इन्हें दो दिनों तक एक मंदिर में छिपाकर रखा।

इस काकोरी कांड के बाद, ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन’ पूरी तरह से बिखड़ चुका था। भगत सिंह ने इसे पुनः जीवित करने का बीड़ा उठाया। इसी क्रम में 1927 में भगत सिंह बेतिया फणीन्द्र नाथ घोष के घर पहुंचे। बेतिया में अलग-अलग क्रांतिकारियों के घर कई दिन रहें। तत्पश्चात भगत सिंह, योगेन्द्र शुक्ल से मिलने वैशाली चले गए।

धन-प्रबंधन के लिए समस्तीपुर ज़िला स्थित शाहपुर पटोरी गांव के एक ज़मीनदार के घर (जिसके तिजोरी में तीन लाख रूपये थे) डकैती डालने की असफल कोशिश की गई। इस डकैती की सबसे खास बात यह थी कि इस राजनीतिक डकैती में खुद भगत सिंह व राजगुरू शामिल थे।

8-9 सितंबर, 1928 को दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला के खंडहरों में क्रांतिकारियों की एक अखिल भारतीय बैठक बुलाई गई। इस बैठक में बिहार की ओर से दो बेतिया-वासी यानी फणीन्द्र नाथ घोष और मनमोहन बनर्जी ने हिस्सा लिया। इस बैठक की अध्यक्षता भगत सिंह कर रहे थे।

दरअसल इसी बैठक में ‘हिन्दुस्तानी समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना’ की स्थापना की गई। बिहार का कमान फणीन्द्र नाथ घोष को सौंपा गया।

1928 में ही संगठन ने धन-प्रबंध के लिए बेतिया से कुछ दूरी पर स्थित मौलनिया गांव में हरगुन महतो के घर डाका डालने की योजना बनाई गई। क़िस्मत ने यहां भी क्रांतिकारियों का साथ नहीं दिया। डकैती के क्रम में क्रांतिकारी कमलनाथ तिवारी की कुहनी कट गई. खून रूकने का नाम नहीं ले रहा था। इस क्रम में हंगामा भी ज़्यादा मच गया। मजबूरन न चाहते हुए भी एक खून करके भागना पड़ा।

कमलनाथ तिवारी को बेतिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन यहां एक खुफिया अधिकारी पहुंच गया और तिवारी जी को पकड़ लिया। इस गिरफ्तारी के बाद से बाकी क्रांतिकारी भी पकड़े गए। हालांकि इनमें से कई फ़रार हो गए। लेकिन बाद में उनकी भी गिरफ़्तारी कहीं न कहीं से हो ही गई।


इस क्रम में फणीन्द्र नाथ घोष माणिकतल्ला स्थित अपने ननिहाल में गिरफ़्तार कर लिए गए। अब वो सरकारी गवाह बन गए थे। अपने ही लोगों के साथ घोष गद्दारी कर चुके थे। उन्हें लाहौर षड़यंत्र के आरोपियों यानी भगत सिंह, राजगुरू, शुखदेव सहित कमलनाथ तिवारी के ख़िलाफ़ गवाही देने के लिए लाहौर ले जाया  गया था। यहीं नहीं, मनमोहन बनर्जी भी अब सरकारी गवाह थे।


27 फरवरी, 1931 का वो दिन भी काफी दुर्भाग्यपूर्ण था. किसी भेदिये ने चन्द्रशेखर आज़ाद के बारे में गोरों को जानकारी दे दी कि वे इलाहाबाद स्थित अल्फ्रेड पार्क से गुज़र रहे हैं। खुफिया अधिकारी नॉट बाबर ने वहां मोर्चा संभाल लिया। आज़ाद ने कुछ देर तक अपने माउजर पिस्टल से नॉट बाबर का मुक़ाबला किया, लेकिन जब उन्हें लगा कि वो गिरफ़्तार कर लिए जाएंगे तो उन्होंने आख़िरी गोली अपने सीने में उतार ली और ‘आज़ाद’ हमेशा के लिए आज़ाद होकर इस दुनिया से कूच कर गए।

हालांकि अंग्रेज़ अभी भी कंफ्यूज़न में थे कि कहीं ये आज़ाद न हुआ तो… तब फणीन्द्र नाथ घोष ने सरकारी गवाह के तौर पर आज़ाद के शव की शिनाख्त की थी। ऐतिहासिक मीना बाजार एवं चंपारण के स्वतंत्रता सेनानियों के सहयोग से बैकुंठ शुक्ल ने फणींद्र नाथ घोष की हत्या कर दी थी। इस अवसर पर बिहार विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के डॉ0 शहनवाज अली ने कहा कि शहीदों एवं स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में बेतिया पश्चिम चंपारण में राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाए ताकि नई पीढ़ी अपने पुरखों की इतिहास को जान सके। यही होगी इन शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि।

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