पटना, 07 मार्च। स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन (एसजेएमसी), आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना में “डिजिटल एजुकेशन: मल्टीमीडिया कंटेंट डेवलपमेंट एंड डिलीवरी” नामक नए और अभिनव डिजिटल मीडिया पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया गया। कार्यशाला का आयोजन कंसोर्टियम फॉर एजुकेशनल कम्युनिकेशन (सीईसी), नई दिल्ली के सहयोग से किया जा रहा है। सीईसी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का एक स्वायत्त संस्थान है जो संचार के विभिन्न आईसीटी मोड के माध्यम से शैक्षिक सामग्री के प्रसार के लिए जिम्मेदार है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि बिहार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्री सुमित कुमार सिंह थे। कार्यशाला को संबोधित करते हुए उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि एसजेएमसी ने बिहार को डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में आगे लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि कोविड ने हमें समझा दिया है कि डिजिटल शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है और यह कैसे शिक्षा की पहुंच को बढ़ाती है।
शिक्षा और नवाचार से बिहार में विकास हो सकता है
सीईसी के निदेशक प्रो. जे.बी. नड्डा ने कहा कि शिक्षा और नवाचार से बिहार में विकास हो सकता है। उन्होंने कहा कि पटना चूँकि शैक्षणिक संस्थानों का केंद्र है, यहाँ डिजिटल कंटेंट निर्माण के लिए शिक्षण संस्थानों को सुदृढ़ किया जा सकता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि एसजेएमसी इस दिशा में आगे बढ़ने में सक्षम होगी क्योंकि केंद्र के पास आवश्यक विशेषज्ञता है और साथ ही बिहार सरकार ने क्लास रूम और वीडियो उत्पादन के लिए नवीनतम उपकरणों की खरीद के लिए भी सहायता प्रदान की है। उन्होंने कहा कि अगर बिहार सरकार एसजेएमसी का समर्थन करना जारी रखती है, तो सीईसी के लिए एसजेएमसी के साथ जुड़ना आसान हो जाएगा। उन्होंने बिहार में पहली बार ऐसी कार्यशाला के आयोजन पर खुशी जताया।
शिक्षा जगत और सरकार के बीच की दूरी को पाटने की जरूरत है
इस अवसर पर बोलते हुए श्री संजय कुमार, अपर मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग, बिहार ने डिजिटल शिक्षा के समक्ष चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अगर हम डिजिटल शिक्षा की ओर आगे बढ़ रहे हैं तो हमें भी उसी के अनुरूप कंटेंट तैयार करने के बारे में सोचना चाहिए। यह केवल पहले से उपलब्ध सामग्री की एक प्रति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि प्रो जे बी नड्डा के नेतृत्व में सीईसी के साथ राज्य के विश्वविद्यालयों के सभी कुलपतियों की एक बैठक आयोजित की जानी चाहिए ताकि भविष्य की रणनीति तैयार की जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा जगत और सरकार के बीच की दूरी को पाटने की जरूरत है ताकि शिक्षा में प्रगति के लिए समाधान निकाला जा सके। उन्होंने कहा कि डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने में पहुंच एक महत्वपूर्ण कारक बनने जा रही है। वर्तमान स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि प्रत्येक वर्ष लगभग 15 लाख परीक्षार्थी मैट्रिक की परीक्षा में शामिल होते हैं, इंटर तक आते आते 12 लाख ही रह जाते हैं और विश्वविद्यालयों तक उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले मात्र 4 लाख ही रह जाते हैं। ऐसे में डिजिटल शिक्षा की मदद से वंचितों को लाभ पहुंचाया जा सकता है ।
एजुकेशन का मतलब सिर्फ डिग्री लेना नहीं होता है
राकेश कुमार सिंह, रजिस्ट्रार (प्रभारी), आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय ने डिजिटल शिक्षा के परिणामस्वरूप उभरने वाली चुनौतियों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि आज के समय में एजुकेशन का मतलब सिर्फ डिग्री लेना नहीं होता है। हमारे भीतर देखने, सुनने और समझने का जज्बा होना चाहिए जिसे डिजिटल एजुकेशन से मुमकिन बनाया जा सकता है।
आज के समय में शिक्षा टेक्नोलॉजी आधारित हो गई है
अपने स्वागत भाषण में, निदेशक एसजेएमसी, इफ्तेखार अहमद ने डिजिटल एजुकेशन की विशेषता बताते हुए कहा कि आज के समय में शिक्षा टेक्नोलॉजी आधारित हो गई है। भारत का ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो 30 प्रतिशत है जबकि बिहार का महज 14.5 प्रतिशत ही है। इस पर उन्होंने चिंता जताई।
इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत एमए प्रथम सेमेस्टर की छात्राओं प्रियंका, अदिति और अनन्या द्वारा भक्ति गीत से किया गया जिसके बाद दीप प्रज्ज्वलित की गई।
तकनीकी सत्र में, डॉ सुनील मेहरू, संयुक्त निदेशक, सीईसी ने “एमओओसी: परिचय और उत्पादन” पर बात की। डॉ. समीर एस. सहस्रबुद्धे, निदेशक, ईएमएमआरसी, एसपीपीयू, पुणे ने ‘एमओओसीः डिजाइन और डिलिवरी’ विषय पर चर्चा की।
कार्यशाला का उद्देश्य बिहार में डिजिटल शिक्षा को लोकप्रिय बनाना
कार्यशाला का उद्देश्य बिहार में डिजिटल शिक्षा को लोकप्रिय बनाना, इसके महत्व को समझना, एमओओसी/डिजिटल कार्यक्रम उत्पादन प्रक्रिया को समझना और प्रतिभाशाली और अभिनव शिक्षकों/शोधकर्ताओं/मीडिया पेशेवरों को बढ़ावा देना है जो डिजिटल कार्यक्रमों/एमओओसी में प्रभावी रूप से योगदान दे सकते हैं।
कार्यशाला में बिहार के विभिन्न संस्थानों और विश्वविद्यालयों के पचास से अधिक संकाय सदस्य, शोधकर्ता भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन एसजेएमसी की समन्वयक डॉ मनीषा प्रकाश ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्थान के बच्चों के साथ ही शिक्षक डॉ. अजय कुमार सिंह, डॉ. अमित कुमार और डॉ. अफ़ाक हैदर का अहम योगदान रहा।
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