बैरिया, 12 अप्रैल।पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होते ही मोदी सरकार अब तक बारह बार ईंधन की कीमतें बढ़ा चुकी है. यह चालाकी और जनता से धोखाधड़ी का एक पैटर्न है, मतलब हर बार चुनाव से पहले के महीनों में ईंधन की कीमतें स्थिर रखो और जैसे ही चुनाव हो जायें तो फटाफट मूल्यवृद्धि कर दो. पेट्रोल अब रु. 118/-प्रति लीटर या इससे अधिक पर मिल रहा है. डीजल भी रु. 102 पार कर चुका है. रसोई गैस का सिलिण्डर रु. 1045 पर पहुंच गया है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, जोकि खुदरा बाजार में मंहगाई का पैमाना होता है, फरवरी में 6.07 प्रतिशत पर जा चुका था. उक्त बातें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पुतला दहन करते हुए लोगों कोसंबोधित करते हुए भाकपा माले नेता सुनील कुमार राव ने कहा। उन्होंने कहा पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी जनता को समझा रहे हैं कि मंहगाई की हालत उतनी बुरी नहीं है जितना आप समझ बैठे हैं, उनका कहना है कि दूसरे देशों में तो हालत और भी ज्यादा खराब है. यह बहानेबाजी जनता को गुमराह करने के लिए ही की जा रही है. सच यह है कि भारत में पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य हमारे सभी पड़ोसी देशों से अधिक हैं, और यहां तक कि अमेरिका जैसे अमीर देश से भी ज्यादा हैं. माले नेता सुरेंद्र चौधरी ने कहा कि इस मूल्यवृद्धि के दो कारण हैं. पहला कारण तो सरकार द्वारा ईंधन की कीमतों का 'डिरेगुलेशन' करना यानि कम्पनियों और वितरकों को उनकी मर्जी से मूल्य बढ़ाने की छूट देना है, बदले में ये कम्पनियां चुनावों से पहले कीमतें स्थिर रख कर भाजपा को फायदा पहुंचा अपना एहसान चुका देते हैं. दूसरी बड़ी वजह है कि भाजपा सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों व डीजल आदि पर भारी एक्साइज टैक्स थोप रखा है. चूंकि भाजपा सरकार भारत के कॉरपोरेटों और अमीर तबकों को लगातार टैक्स में छूट दे रही है अत: सरकार चलाने का खर्च यह ईंधन पर एक्साइज टैक्स बढ़ा—बढ़ा कर ही निकाल रही है. माले नेता जोखू चौधरी ने कहा वास्तव में डिरेगुलेशन की नीति केवल आम जनता की कमर तोड़ने का काम करती है, सच्चाई यह है कि अब भी बंद कमरों में सरकार की मर्जी से ही मूल्य निर्धारण होता है जैसा कि हमने चुनाव से पहले देखा था. फ्री मार्केट (खुला बाजार) या डिरेगुलेशन की नीति वास्तव में भाजपा की चुनावी अवसरवादिता की गुलाम है. माले नेता बिनोद कुशवाहा ने कहा महत्वपूर्ण बात यह कि आज जब कीमतें बढ़ाई जा रही हैं तब सरकार रूस से 35 डालर प्रति बैरल की दर से (विश्व बाजार से 65 प्रतिशत कम कीमत पर) ईंधन का आयात कर रही है. जो रूस इस समय यूक्रेन पर युद्ध छेड़ने का अपराध कर रहा है उससे पेट्रोलियम खरीदना कितना नैतिक है इस सवाल को अगर छोड़ भी दिया जाय तब भी यह सवाल तो पूछना ही चाहिए कि सस्ता ईंधन खरीदने के बाद भी जनता को मंहगा ईंधन क्यों बेचा जा रहा है? इसका साफ साफ मतलब यह हुआ कि सरकार अपनी कूटनीतिक और राजनीतिक क्षमताओं का इस्तेमाल जनता के लिए नहीं, वरन् तेल कम्पनियों का मुनाफा बढ़वाने के लिए कर रही है.
माले नेता हारुन गद्दी ने कहा ईंधन के मूल्यों में वृद्धि से अन्य आवश्यक वस्तुओं की मूल्य वृद्धि भी स्वत: ही हो जाती है, फलस्वरूप दो साल से महामारी और लॉकडाउन के चलते बेरोजगारी, गरीबी और भूख की मार सह रहे आम लोगों की क्रय शक्ति और भी कम हो जायेगी. इसलिए अब यह जरूरी हो गया है कि सरकार तत्काल तबाही ढाने वाली डिरेगुलेशन की नीति पर रोक लगाये और सभी प्रकार के ईंधन के मूल्य निर्धारण की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले. साथ ही पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज टैक्स बढ़ा कर सरकारी आय बढ़ाने का मतलब है जनता की जेबों पर डाका डालना, अत: यह भी बंद हो. इसके स्थान पर सरकार अमीरों से पूरा टैक्स वसूल कर सरकारी आय में वृद्धि करे.
लगातार बढ़ रही बेरोजगारी और रोजगारों पर हो रहे हमलों के चलते वास्तविक वेतन की दरों में काफी गिरावट हो चुकी ,है ऐसे में ईंधन मूल्य वृद्धि से पूरे देश के लिए और गम्भीर आर्थिक मंदी में चले जाने का खतरा बढ़ जायेगा.
डिरेगुलेशन की नीति वापस करने, ईंधन की कीमतें कम करने के लिए एक्साइज ड्यूटी घटाने समेत सरकार द्वारा प्रभावी कदम उठाने और अमीरों से टैक्स पूरा वसूलने की मांग के साथ *भाकपा माले ने 6—13 अप्रैल को मंहगाई के विरोध में एक सप्ताह का देशाव्यापी अभियान चलाने का आह्वान किया है*. हमारी आपसे अपील है कि इस अभियान का हिस्सा बनें और सक्रिय रूप से भागीदारी करें. कार्यक्रम में माले नेता छोटे मुखिया, अब्दुल कलाम, मोती लाल मुखिया,शिवप्रशन मुखिया,राम नाथ मुखिया,भरत राम,ब्यास भगत,अनील सिंह,शाह आलम मियां आदि थे।
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