तिब्बत की आजादी का सवाल दुनिया के स्वतंत्रता के पक्षधरों के लिए बड़ी चुनौती : अजय खरे

 भारत तिब्बत मैत्री संघ का दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन राजगीर में 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को


रीवा 29 अक्टूबर । भारत तिब्बत मैत्री संघ का नौवां दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन बिहार राज्य के राजगीर में आगामी 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को आयोजित है । सम्मेलन में देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि भाग लेंगे । भारत तिब्बत मैत्री संघ की मध्यप्रदेश राज्य इकाई के अध्यक्ष अजय खरे ने एक जानकारी ने बताया कि प्रदेश की विभिन्न सक्रिय जिला इकाइयों से राजगीर सम्मेलन में 10 प्रतिनिधियों के शामिल होने की उम्मीद है । राजगीर भारत के बिहार राज्य के नालंदा ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, जिससे बाद में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ । राजगीर से ऐतिहासिक नालंदा महज 14 किलोमीटर दूर स्थित है इसके अलावा बोध गया 80 किलोमीटर और बिहार की राजधानी पटना 100 किलोमीटर की दूरी पर है । श्री खरे ने बताया कि भारत तिब्बत मैत्री संघ के राजगीर सम्मेलन में तिब्बत की अस्मिता एवं भारत की सुरक्षा जैसे सवालों पर विशेष चर्चा होगी । सन 1959 में चीन के हमले के चलते तिब्बत के प्रमुख एवं आध्यात्मिक नेता परम पावन दलाई लामा को अपने हजारों अनुयायियों के साथ भारत आना पड़ा था लेकिन अभी तक तिब्बत का स्वतंत्र बजूद न होने के कारण भारत में रह रहे तिब्बती समुदाय के लोगों की वापसी संभव नहीं हो सकी है। श्री खरे ने कहा कि जब दुनिया के तमाम देश 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आजाद हो रहे थे तब चीन के द्वारा तिब्बत को हड़प लिया जाना दुनिया के स्वतंत्रता के पक्षधरों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है । इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत ने तिब्बतियों के साथ शरणागत धर्म का बखूबी पालन किया । यहां तक भारत को 20 अक्टूबर सन 1962 में विश्वासघाती चीनी आक्रमण का भी सामना करना पड़ा जिसके चलते कई दिनों की लड़ाई में देश के हजारों वीर जवान हताहत हुए । हमलावर चीन आगे बढ़ने के बाद एकतरफा युद्धविराम घोषित करके कुछ भूभाग से वापस भी लौट गया लेकिन करीब 40000 वर्ग किलोमीटर भारतीय भू-भाग आज भी उसके अवैध कब्जे में है । देखने को मिलता है कि आए दिन चीन भारत की सीमाओं पर घुसपैठ और तनाव बढ़ाने का काम करता रहता है जिससे देश की सुरक्षा व्यवस्था को काफी अधिक बोझ और खतरा उठाना पड़ रहा है । जब तक तिब्बत आजाद था तो भारत और तिब्बत के बीच निर्धारित सीमा मैक मोहन लाइन पर किसी तरह की सेना नहीं थी । श्री खरे ने कहा कि इतिहास में चीन कभी भारत का पड़ोसी देश नहीं रहा बल्कि तिब्बत को हड़पने के बाद वह भारत की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है। यह काफी आपत्तिजनक बात है कि तिब्बत को हड़पने के बाद चीन मैक मोहन लाइन की सच्चाई को नकारते हुए साम्राज्यवादी मंसूबों को आगे बढ़ाने की नापाक कोशिश करता आ रहा है । श्री खरे ने कहा कि तिब्बत की आजादी के सवाल पर दुनिया के स्वतंत्रता के पक्षधरों को मुखर होना होगा । तिब्बत की आजादी से भारत की धार्मिक ऐतिहासिक विरासत कैलाश मानसरोवर को भी चीनी कब्जे से मुक्ति मिलेगी । इसके साथ ही भारतीय सीमाएं भी साम्राज्यवादी चीन के चंगुल से सुरक्षित रहेंगी।

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