पवित्र मोहर्रम अरबी नव वर्ष 1444 हिजरी पर दिया विश्वशांति सत्य अहिंसा मानवता सामाजिक सद्भावना आपसी भाईचारे का संदेश।




          

    पटना  30 जुलाई। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में पवित्र मोहर्रम अरबी नव वर्ष 1444 हिजरी आरंभ होने के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड डॉ शाहनवाज अली अमित कुमार लोहिया वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल सामाजिक कार्यकर्ता नवीदू चतुर्वेदी पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन एवं अल बयान के संपादक डा सलाम ने संयुक्त रूप से कहा कि पवित्र मोहर्रम के महीने के साथ ही अरबी नव वर्ष  1444 हिजरी वर्ष का आरंभ हो रहा है। मोहर्रम चंद्र पंचांग का पहला महीना है। हिजरी वर्ष का आरंभ इसी महीने से होता है। पवित्र मोहर्रम माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के करसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। साथ ही इस मास में रोजा रखने की खास अहमियत बयान की है।मुख्तलिफ हदीसों, यानी हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के कौल (कथन) व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। ऐसे ही हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने पवित्र मुहर्रम का जिक्र करते हुए इसे ईश्वर का महीना कहा। इसे जिन चार पवित्र महीनों में रखा गया है, उनमें से दो महीने मुहर्रम से पहले आते हैं। यह दो मास हैं जीकादा व जिलहिज्ज।एक हदीस के अनुसार  ईश्वर के पैगंबर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि पवित्र रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो ईश्वर के महीने यानी पवित्र मुहर्रम में रखे जाते हैं। यह कहते समय नबी-ए-करीम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे पवित्र मुहर्रम के हैं।

इस अवसर पर वक्ताओं ने पूरे विश्व में विश्व शांति मानवता अहिंसा आपसी प्रेम सामाजिक सद्भावना का संदेश देते हुए कहा कि पवित्र मुहर्रम अरबी कैलेंडर का प्रथम मास है। इत्तिफाक की बात है कि आज मुहर्रम का यह पहलू आमजन की नजरों से ओझल है और इस माह में ईश्वर की इबादत करनी चाहीये जबकि पैगंबरे-इस्लाम ने इस माह में खूब रोजे रखे और अपने साथियों का ध्यान भी इस तरफ आकर्षित किया। इस बारे में कई प्रामाणिक हदीसें मौजूद हैं। मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादतों का भी बड़ा सवाब बताया गया है। हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का सवाब (फल) 30 रोजों के बराबर मिलता है। गोया यह कि मुहर्रम के महीने में खूब रोजे रखे जाने चाहिए। यह रोजे अनिवार्य यानी जरूरी नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत सवाब है।

इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि पवित्र मोहर्रम का महीना गुनाहों से मुक्ति का महीना है। पवित्र मोहर्रम के महीने में विश्व के प्रथम मानव हजरत ए आदम को अल्लाह  ने गुनाहों से निजात दिया था, अल्लाह के नबी हजरत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था। ईश्वर के अनेक नबियों को अल्लाह ने पवित्र मोहर्रम के महीने में  मुक्ति प्रदान की थी। इसके साथ ही आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था। कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी विभत्स और निंदनीय है। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि प्रत्येक वर्ष कर्बला का वाकया  स्मरण करते हुए भी हमें हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का तरीका अपनाना चाहिए।

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