वाॅटर सैनिटेशन पर दिल्ली में आयोजित कार्यशाला में सिवान की रही भागीदारी

 



    

पटना , 28 जून।  पानी, स्वच्छता व स्वच्छ व्यवहार को बढ़ावा देने में सामुदायिक सहभागिता बढ़ाने के लिए वॉस इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली व सहगल फाउंडेशन, गुरूग्राम के संयुक्त तत्वधान में नई दिल्ली के  एरोसीटी स्थित होटल लेमन ट्री प्रीमियर में 21 से 23 जून तक 

सामुदायिक वॉश प्रमोशन प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया था। 

राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस तीन दिवसीय कार्यशाला में जल प्रबंधन पानी से संबंधित अन्य कई महत्वपूर्ण कार्य करने वाले  देश के कई विश्वविद्यालयों के शोध छात्र,युवा जल वैज्ञानिक, जल प्रबंधक व जल प्रबंधन पर कार्य करने वाले स्वैच्छिक संगठनों  के प्रतिनिधि शामिल हुए थें। 

 इस कार्यशाला में बिहार का प्रतिनिधित्व सिवान की सामुदायिक रेडियो स्टेशन रेडियो स्नेही के जनसंपर्क अधिकारी नवीन सिंह परमार ने किया।

 कार्यशाला से लौट कर नवीन सिंह परमार ने आज बताया कि पानी, स्वच्छता व स्वच्छ व्यवहार को बढ़ावा देने में सामुदायिक सहभागिता बढ़ाने के लिए नई दिल्ली में आयोजित

इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग लेकर बहुत कुछ सिखने का मौका मिला। रेडियो स्नेही  जल्द ही सिवान के कुछ सामाजिक संगठनों एवं शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर  पानी, स्वच्छता व स्वच्छ व्यवहार विषय पर सिवान में सामुदायिक स्तर पर पर कार्य का शुभारंभ करेगा।

उन्होंने कहां कि सुरक्षित जल, स्वच्छता और साफ-सफाई तक पहुंच स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सबसे बुनियादी मानवीय आवश्यकता है। तेजी से जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और कृषि, उद्योग और ऊर्जा क्षेत्रों में पानी की बढ़ती जरूरतों के कारण पानी की मांग बढ़ रही है।

वर्तमान स्थिति बनी रही तो  2030 तक अरबों लोगों को इन बुनियादी सेवाओं से वंचित होना पड़ेगा। पानी के दुरुपयोग, खराब प्रबंधन, भूजल के अत्यधिक दोहन और मीठे पानी की आपूर्ति के प्रदूषण ने जल संकट को बढ़ा दिया है। इसके अलावा, देशों को खराब जल-संबंधी पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली पानी की कमी, पानी और स्वच्छता में कम निवेश और सीमा पार जल पर अपर्याप्त सहयोग से जुड़ी बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

2030 तक पीने के पानी, स्वच्छता और स्वच्छता तक सार्वभौमिक पहुंच तक पहुंचने के लिए, प्रगति की वर्तमान दरों को चार गुना बढ़ाने की आवश्यकता होगी। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने से सालाना 829,000 लोगों को बचाया जा सकेगा, जो असुरक्षित पानी, अपर्याप्त स्वच्छता और खराब स्वच्छता प्रथाओं के कारण सीधे तौर पर होने वाली बीमारियों से मर जाते हैं।

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